राजकीय सम्मान के साथ चायवाले को दी गई अंतिम विदाई, PM मोदी – CM पटनायक ने जताया दुख; जानिए, कैसे प्रकाश राव ने बच्चों की जिंदगी को संवारा

भुवनेश्वर। पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित ओडिशा के चायवाले देवरापल्ली प्रकाश राव को गुरुवार सुबह राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने दुख जताया। इसके अलावा भी कई दलों के नेताओं ने राव के निधन पर शोक व्यक्त किया। राव दशकों तक कटक के काफी लोकप्रिय चायवाले रहे। कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में अंतिम सांस लेने वाले 63 वर्षीय राव कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए थे। वे कोई मामूली चाय बेचने वाले शख्स नहीं थे, बल्कि उन्हें झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए साल 2019 में पद्मश्री अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था। वे शिक्षा के महत्व को समझते थे और इसी वजह उन्होंने अपने घर के नजदीक एक स्कूल भी शुरू किया था, जहां वे बच्चों को पढ़ाते थे।

यह साल 2000 का समय था जब राव ने रिक्शा चालक, नौकरानी, नगरपालिका के सफाई कर्मियों के बच्चों के लिए बक्सीबाजार स्लम में अपने दो कमरों के घर में ‘आशा-ओ-आश्वसन’ स्कूल की शुरुआत की। ये बच्चे पहले स्कूलों में पढ़ाने करने के बजाए इधर-उधर घूमने में ज्यादा दिलचस्पी रखते थे, लेकिन बाद में वे राव के स्कूल में पढ़ने के लिए आने लगे। लगातार स्कूल में बुलाने के लिए राव इन बच्चों के लिए दूध और बिस्किट किसी मिड-डे मील की तरह उपलब्ध कराते थे। कुछ साल पहले राव ने कहा था कि वे बचपन में पढ़ना चाहते थे, लेकिन उनके पिता सोचते थे कि पढ़ाई समय की बर्बादी है। उन्होंने कहा था, ”मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनना चाहता था, लेकिन चायवाला बनकर ही रह गया। मुझे पता है कि अवसर नहीं होना कैसा होता है। मैं नहीं चाहता कि इन बच्चों का भाग्य भी मेरे जैसे ही हो।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में कटक में हुई एक रैली के बाद प्रकाश राव से मुलाकात की थी। वहीं, उनके निधन पर मोदी ने ट्वीट कर दुख भी जताया। पीएम मोदी ने कहा, ”श्री डी प्रकाश राव के निधन से दुखी हूं। जो उत्कृष्ट कार्य उन्होंने किया है, वह लोगों को प्रेरित करता रहेगा। उन्होंने शिक्षा को सशक्तीकरण के महत्वपूर्ण साधन के रूप में देखा था।” साल 2018 में आकाशवाणी पर अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के संबोधन के दौरान भी पीएम मोदी प्रकाश राव का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि ”तमसो मा ज्योतिर्गमय (अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाना) कौन नहीं जानता। लेकिन यह प्रकाश राव हैं, जो इसको जीते हैं। वह जानते हैं कि दूसरों के सपनों को कैसे पूरा करना है। उनका जीवन पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है।”

राव अपने चाय के स्टॉल पर जितनी भी चाय बेचते थे, उसमें से आधी रकम स्कूल के लिए इस्तेमाल करते। वे यहां तक कि दालमा (दाल और सब्जी की तैयारी) और चावल भी पकाते। स्कूल के शुरुआत के समय वहां सिर्फ चार बच्चे पढ़ने आए थे। दो कमरों के घर में ही बच्चों को पढ़ाया जाता, लेकिन पिछले साल 100 बच्चों से ज्यादा छात्र उनके स्कूल में पढ़ते थे। हालांकि, राव ने जब स्कूल शुरू किया तो बच्चों के माता-पिता मानते थे कि स्कूल में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि वे दूसरे काम कर लें। राव ने एक बार बताया कि उस समय एक मान्यता थी कि पढ़ने के बाद बच्चे क्या करेंगे? बच्चों को स्कूल में भेजने के लिए कहकर आप हमें अतिरिक्त कमाई से क्यों वंचित रखना चाहते हैं? हालांकि, लोगों की यह सोच कुछ समय बाद दूर होने लगी।

प्रकाश राव सच्चे अर्थ में सोशल वर्कर थे। वे 1978 से 200 से ज्यादा बार ब्लड डोनेट कर चुके थे। जब उन्हें 1976 में लकवा मार गया तो उन्हें बाद में पता चला कि किसी ने ब्लड डोनेट करके उनकी जान बचाई है। इसके बाद, उन्होंने काफी बार अपने ब्लड को डोनेट किया। वहीं, उनके काम को उचित श्रद्धांजलि देते हुए, कटक जिला प्रशासन ने गुरुवार को घोषणा की कि वह राव के स्कूल को चलाएंगे।

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