74 मन की बात में मोदी ने कहा, आत्मनिर्भर भारत का मंत्र गांवों तक पहुंच रहा है: PM मोदी

न्यूज़ डेस्क। प्रधानमंत्री मोदी ने आज एक बार फिर मन की बात कार्यक्रम के जरिए देशवासियों को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कोरोना, विज्ञान, परीक्षा और आत्मनिर्भर भारत जैसे विषयों की चर्चा की। पीएम मोदी ने कहा कि प्रत्येक देशवासी के जुड़ने से ही भारत आत्मनिर्भर बन सकेगा। आइए पढ़ते हैं मन की बात का मूल पाठ।

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। कल माघ पूर्णिमा का पर्व था। माघ का महीना विशेष रूप से नदियों, सरोवरों और जलस्त्रोतों से जुड़ा हुआ माना जाता है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है :-

“माघे निमग्ना: सलिले सुशीते, विमुक्तपापा: त्रिदिवम् प्रयान्ति|”

अर्थात, माघ महीने में किसी भी पवित्र जलाशय में स्नान को पवित्र माना जाता है। दुनिया के हर समाज में नदी के साथ जुड़ी हुई कोई-न-कोई परम्परा होती ही है। नदी तट पर अनेक सभ्यताएं भी विकसित हुई हैं। हमारी संस्कृति क्योंकि हजारों वर्ष पुरानी है, इसलिए, इसका विस्तार हमारे यहाँ और ज्यादा मिलता है। भारत में कोई ऐसा दिन नहीं होगा जब देश के किसी-न-किसी कोने में पानी से जुड़ा कोई उत्सव न हो। माघ के दिनों में तो लोग अपना घर-परिवार, सुख-सुविधा छोड़कर पूरे महीने नदियों के किनारे कल्पवास करने जाते हैं। इस बार हरिद्वार में कुंभ भी हो रहा है। जल हमारे लिये जीवन भी है, आस्था भी है और विकास की धारा भी है। पानी, एक तरह से पारस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। कहा जाता है पारस के स्पर्श से लोहा, सोने में परिवर्तित हो जाता है। वैसे ही पानी का स्पर्श, जीवन के लिये जरुरी है, विकास के लिये जरुरी है।

साथियो, माघ महीने को जल से जोड़ने का संभवतः एक और भी कारण है, इसके बाद से ही, सर्दियाँ खत्म हो जाती हैं, और, गर्मियों की दस्तक होने लगती है, इसलिए पानी के संरक्षण के लिये, हमें, अभी से ही प्रयास शुरू कर देने चाहिए। कुछ दिनों बाद मार्च महीने में ही 22 तारीख को ‘World Water Day’ भी है।

मुझे U.P. की आराध्या जी ने लिखा है कि दुनिया में करोड़ों लोग, अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा पानी की कमी को पूरा करने में ही लगा देते हैं। ‘बिन पानी सब सून’, ऐसे ही नहीं कहा गया है। पानी के संकट को हल करने के लिये एक बहुत ही अच्छा message पश्चिम बंगाल के ‘उत्तर दीनाजपुर’ से सुजीत जी ने मुझे भेजा है। सुजीत जी ने लिखा है कि प्रकृति ने जल के रूप में हमें एक सामूहिक उपहार दिया है इसलिए इसे बचाने की जिम्मेदारी भी सामूहिक है। ये बात सही है जैसे सामूहिक उपहार है, वैसे ही सामूहिक उत्तरदायित्व भी है। सुजीत जी की बात बिलकुल सही है। नदी, तालाब, झील, वर्षा या जमीन का पानी, ये सब, हर किसी के लिये हैं।

साथियो, एक समय था जब गाँव में कुएं, पोखर, इनकी देखभाल, सब मिलकर करते थे, अब ऐसा ही एक प्रयास, तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में हो रहा है। यहाँ स्थानीय लोगों ने अपने कुओं को संरक्षित करने के लिये अभियान चलाया हुआ है। ये लोग अपने इलाके में वर्षों से बंद पड़े सार्वजनिक कुओं को फिर से जीवित कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश के अगरोथा गाँव की बबीता राजपूत जी भी जो कर रही हैं, उससे आप सभी को प्रेरणा मिलेगी। बबीता जी का गाँव बुंदेलखंड में है। उनके गाँव के पास कभी एक बहुत बड़ी झील थी जो सूख गई थी। उन्होंने गाँव की ही दूसरी महिलाओं को साथ लिया और झील तक पानी ले जाने के लिये एक नहर बना दी। इस नहर से बारिश का पानी सीधे झील में जाने लगा। अब ये झील पानी से भरी रहती है।

साथियो, उत्तराखंड के बागेश्वर में रहने वाले जगदीश कुनियाल जी का काम भी बहुत कुछ सिखाता है। जगदीश जी का गाँव और आस-पास का क्षेत्र पानी की जरूरतों के लिये के एक प्राकृतिक स्रोत्र पर निर्भर था। लेकिन कई साल पहले ये स्त्रोत सूख गया। इससे पूरे इलाके में पानी का संकट गहराता चला गया। जगदीश जी ने इस संकट का हल वृक्षारोपण से करने की ठानी। उन्होंने पूरे इलाके में गाँव के लोगों के साथ मिलकर हजारों पेड़ लगाए और आज उनके इलाके का सूख चुका वो जलस्त्रोत फिर से भर गया है।

साथियो, पानी को लेकर हमें इसी तरह अपनी सामूहिक जिम्मेदारियों को समझना होगा। भारत के ज्यादातर हिस्सों में मई-जून में बारिश शुरू होती है। क्या हम अभी से अपने आसपास के जलस्त्रोतों की सफाई के लिये, वर्षा जल के संचयन के लिये, 100 दिन का कोई अभियान शुरू कर सकते हैं ? इसी सोच के साथ अब से कुछ दिन बाद जल शक्ति मंत्रालय द्वारा भी जल शक्ति अभियान – ‘Catch the Rain’ भी शुरू किया जा रहा है। इस अभियान का मूल मन्त्र है – ‘Catch the rain, where it falls, when it falls.’। हम अभी से जुटेंगे, हम पहले से जो rain water harvesting system है उन्हें दुरुस्त करवा लेंगे, गांवो में, तालाबों में, पोखरों की, सफाई करवा लेंगे, जलस्त्रोतों तक जा रहे, पानी के रास्ते की रुकावटें, दूर, कर लेंगे तो ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल का संचयन कर पायेंगे।

मेरे प्यारे देशवासियो, जब भी माघ महीने और इसके आध्यात्मिक सामाजिक महत्त्व की चर्चा होती है तो ये चर्चा एक नाम के बिना पूरी नहीं होती। ये नाम है संत रविदास जी का। माघ पूर्णिमा के दिन ही संत रविदास जी की जयंती होती है। आज भी, संत रविदास जी के शब्द, उनका ज्ञान, हमारा पथप्रदर्शन करता है।

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उन्होंने कहा था-

एकै माती के सभ भांडे,

सभ का एकौ सिरजनहार।

रविदास व्यापै एकै घट भीतर,

सभ कौ एकै घड़ै कुम्हार।|    

हम सभी एक ही मिट्टी के बर्तन हैं, हम सभी को एक ने ही गढ़ा है। संत रविदास जी ने समाज में व्याप्त विकृतियों पर हमेशा खुलकर अपनी बात कही। उन्होंने इन विकृतियों को समाज के सामने रखा, उसे सुधारने की राह दिखाई और तभी तो मीरा जी ने कहा था –

‘गुरु मिलिया रैदास, दीन्हीं ज्ञान की गुटकी’

ये मेरा सौभाग्य है कि मैं संत रविदास जी की जन्मस्थली वाराणसी से जुड़ा हुआ हूँ। संत रविदास जी के जीवन की आध्यात्मिक ऊंचाई को और उनकी ऊर्जा को मैंने उस तीर्थ स्थल में अनुभव किया है।

साथियो, रविदास जी कहते थे-

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।

कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।|

अर्थात् हमें निरंतर अपना कर्म करते रहना चाहिए, फिर फल तो मिलेगा ही मिलेगा, यानी, कर्म से सिद्धि तो होती ही होती है। हमारे युवाओं को एक और बात संत रविदास जी से जरुर सीखनी चाहिए। युवाओं को कोई भी काम करने के लिये, खुद को, पुराने तौर तरीकों में बांधना नहीं चाहिए। आप, अपने जीवन को खुद ही तय करिए। अपने तौर तरीके भी खुद बनाइए और अपने लक्ष्य भी खुद ही तय करिए। अगर आपका विवेक, आपका आत्मविश्वास मजबूत है तो आपको दुनिया में किसी भी चीज से डरने की जरुरत नहीं है। मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि कई बार हमारे युवा एक चली आ रही सोच के दबाव में वो काम नहीं कर पाते, जो करना वाकई उन्हें पसंद होता है। इसलिए आपको कभी भी नया सोचने, नया करने में, संकोच नहीं करना चाहिए। इसी तरह, संत रविदास जी ने एक और महत्वपूर्ण सन्देश दिया है। ये सन्देश है ‘अपने पैरों पर खड़ा होना’। हम अपने सपनों के लिये किसी दूसरे पर निर्भर रहें ये बिलकुल ठीक नहीं है। जो जैसा है वो वैसा चलता रहे, रविदास जी कभी भी  इसके पक्ष में नहीं थे और आज हम देखते है कि देश का युवा भी इस सोच के पक्ष में बिलकुल नहीं है। आज जब मैं देश के युवाओं में innovative spirit देखता हूँ तो मुझे लगता है कि हमारे युवाओं पर संत रविदास जी को जरुर गर्व होता।

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