दुनिया भर में दुत्कारे गए, खतरा बने घुसपैठी रोहिंग्या मुस्लिमों को दिल्ली में बसाने के लिए जकात फाउंडेशन बना रही है कॉलोनी, इससे देश के नागरिकों का होगा सीधा नुकसान
न्यूज़ डेस्क। म्यांमार नाम तो सुना ही होगा वंही के रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठी दुनिया भर के लिए खतरा बने हुए हैं। अपने ही देश म्यांमार में उत्पात और हिंसा मचाने पर खदेड़े गए लाखों रोहिंग्या पड़ोसी देशों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं। इन्हें कोई भी देश शरण देने के लिए तैयार नहीं है। पड़ोसी मुस्लिम देश बांग्लादेश, इंडोनेशिया और थाइलैंड इनके करतूत को देखते हुए अपने यहां रखना नहीं चाहते। यहां तक की 50 से ज्यादा मुस्लिम देशों ने इनके घुसने पर रोक लगा रखी है। रोहिंग्या शरणार्थियों के पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से संपर्क में होने के कारण लोग इसे सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा मानते हैं। लेकिन इन रोहिग्या मुसलमानों को कुछलोग पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, जम्मू कश्मीर, असम के साथ दिल्ली में बसाने में लगे हुए हैं।
हाल ही में मुस्लिम युवाओं के IAS और IPS बनने पर चर्चा में आए जकात फाउंडेशन की ओर से दिल्ली में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने के लिए एक कॉलोनी बनाई जा रही है। सोशल मीडिया पर यूजर्स के ट्वीट से पता चलता है कि जकात फाउंडेशन सिर्फ मुस्लिम युवाओं को UPSC परीक्षा की तैयारी के लिए ट्रेनिंग ही नहीं देता बल्कि इन रोहिंग्या घुसपैठियों की मदद भी कर रहा है। इन रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए जकात फाउंडेशन ने दिल्ली में दारुल हिजरात नाम से मेकशिफ्ट कैंप भी बनाया है।
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Zakat Foundation established a makeshift camp for Rohingya invaders named 'Darul Hijrat' right inside the national capital Delhi at a strategic location.
(Details of all the Rohingya settlements in Delhi are given in the thread.) pic.twitter.com/b8GAEFTgad— Ajaey Sharma (@ajaeys) September 6, 2020
यूजर अजेय शर्मा के एक के बाद एक कई ट्वीट करके इस बारे में जानकारी दी है। ट्वीट में जकात फाउंडेशन का एक नक्शा भी शेयर किया गया है। जिससे पता चलता है कि रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए स्थायी कॉलोनी के साथ मस्जिद भी बनाई जाएगी। इसके साथ ही यहां जकात फाउंडेशन का परमानेंट दफ्तर भी होगा। बताया जाता है कि दिल्ली के शाहीन बाग, कालिंदी कुंज, विकास पुरी और खजूरी खास में कई रोहिग्या बस्तियां हैं और इन इलाकों मे दिल्ली दंगा के समय बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी।
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Without wasting any time, Zakat Foundation released a plan and map for a proper colony for Rohingyas with Mosque and a permanent Zakat office. pic.twitter.com/Vp963XQyYQ— Ajaey Sharma (@ajaeys) September 6, 2020
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The construction was started very soon. Strangely, Zakat Foundation openly claims that the project is certified by the Home Ministry. (This is happening in 2018.) pic.twitter.com/i4lru2nGW0— Ajaey Sharma (@ajaeys) September 6, 2020
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Zakat Foundation makes sure that Rohingyas properly study Islamic doctrines. It sends Islamic teachers (maulvis and mullahs) to teach Islamic doctrines to Rohingya kids.
*God's Grace School in the attached pic is associated with Zakat' president. pic.twitter.com/S6EszgJxnI— Ajaey Sharma (@ajaeys) September 6, 2020
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Now, the big question – What were the central government and security apparatus doing all this time? Well, they were busy writing greeting cards to Zakat Foundation and attending its presentations where they were issuing open threats to Hindus, calling them lynchers. pic.twitter.com/2gY3lBr1Cu— Ajaey Sharma (@ajaeys) September 6, 2020
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। म्यांमार सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है, हालांकि वहां ये कई पीढ़ियों से रह रहे हैं। ऐसे में पिछले करीब नौ साल से वहां की सेना और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच एक संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। इस दौरान एक लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान विस्थापित हो चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 40,000 रोहिंग्या मुसलमान हैं जिन्हें कुछ खास संगठनों और लोगों की ओर से देश भर के मुस्लिम इलाकों में बसाने की कोशिश की जा रही है।
भारत सरकार का भी मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थी देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं। इसके पीछे सरकार के कई ऐसे दावे हैं जिनको खारिज नहीं किया जा सकता।
अलकायदा से कनेक्शन
दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद और मेवात में आतंकियों से जुड़े रोहिंग्या पकड़े गए हैं। रेडिकल यानि कट्टर इस्लाम से इनका निकट संबंध माना जाता है। रोहिंग्या को आतंक का प्रशिक्षण देने वाला अलकायदा का आतंकी भी दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। 28 वर्षीय समियुन रहमान वैसे तो मूल रूप से बंग्लादेशी है, लेकिन उसने ब्रिटिश नागरिकता ले रखी थी। अलकायदा का यह आतंकी भर्ती और प्रशिक्षण देने का काम करता था। इसकी योजना दिल्ली, मणिपुर और मिजोरम में बेस बनाकर रोहिंग्या शरणार्थियों की अलकायदा में भर्ती करना था। रहमान अलकायदा के टॉप कमांडर से सीधे संपर्क में था और उनके निर्देश पर काम कर रहा था। अलकायदा आतंकी ने बताया कि उसने दिल्ली, बिहार, उत्तरी-पूर्वी कश्मीर और झारखंड के हजारीबाग में 12 रोहिंग्या शरणार्थियों के संपर्क में था।
रोहिंग्या के आतंकियों से जुड़े तार
सरकार का मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों के तार कई बड़े आतंकी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं। वैश्विक समस्या बन चुके आईएसआईएस के रोहिंग्या से संबंध होने की आशंका निराधार नहीं है। केंद्र सरकार के पास इसके लिए ठोस आधार है। म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंग्या, म्यांमार में उन पर हुई कार्रवाई का बदला भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर ले सकते हैं। भारत के बौद्ध समुदाय को अपना निशाना बना सकते हैं। इसके अलावा रोहिंग्या शरणार्थियों के तार कई अन्य अलगाववादी संगठनों से जुड़े हो सकते हैं।
पाकिस्तान भी दे रहा है समर्थन
Isis के अलावा रोहिंग्या से संबंध पाकिस्तान की एजेंसी Isis से होने की प्रबल आशंका जाहिर की गई है। पाकिस्तान रोहिंग्या शरणार्थियों को समर्थन देकर उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है। पाकिस्तान हमेशा से ऐसे मौकों की फिराक में रहता है, जब उसे भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध करने का मौका मिले। रोहिंग्या शरणार्थियों के रूप में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ एक ऐसा हथियार मिल जाएगा, जिसका वो अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करेगा। रोहिंग्या शरणार्थी पाकिस्तान के मुस्लिम देश होने के कारण प्रति निकटता का भाव रखते हैं। इसलिए पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसुद अजहर ने रोहिंग्या शरणार्थियों को समर्थन दिया है। पाकिस्तान भारत के साथ दुश्मनी निकालने के लिए उनको इस्तेमाल कर सकता है।
रोहिंग्या म्यांमार में आतंक फैलाने के दोषी
म्यांमार सरकार रोहिंग्या को देश में आतंक फैलाने का दोषी मानती है। इसलिए म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या पर देश में आतंक और हिंसा फैलाने के आरोप में उनको खदेड़ने की कार्रवाई की है। 1962 से 2011 के सैनिक शासन के दौरान तो रोहिंग्या पर सरकार का अंकुश रहा, लोकतंत्र का बदलाव आते रोहिंग्या मुसलमान आतंक फैलाने में जुट गए। जाहिर है जब म्यांमार रोहिंग्या को अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा मानकर इनको खदेड़ने का काम कर रही है तो रोहिंग्या शरणार्थी किसी और देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा क्यों नहीं बनेंगे?
50 से अधिक मुस्लिम देशों का इंकार
दूसरी सबसे बड़ी बात यह समझने की है कि रोहिंग्या शरणार्थी मुस्लिम बहुल हैं, लेकिन मुस्लिम बहुल रोहिंग्या शरणार्थियों को 50 से ज्यादा मुस्लिम देशों ने शरण देने से मना कर दिया है। म्यांमार के पड़ोसी और मुस्लिम देश होने के बावजूद मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश भी इन्हें अपने यहां शरण नहीं देना चाहते। दरअसल ये देश भी इन रोहिंग्या को अपने लिए खतरा मानते हैं। बांग्लादेश ने भी अब रोहिंग्या को खतरा मान लिया है। बांग्लादेश के भीतर भी इस बात का विरोध किया जा रहा हैं। ये मुस्लिम देश भी रोहिंग्या शरणार्थियों को देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा मान रहे हैं। अधिकतर मुस्लिम देश जिनका निर्माण धर्म के आधार पर हुआ है, वे देश अगर अपने मुसलमान भाइयों का शरण देने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे भी भारत सरकार को ऐसी कोई वजह दिखाई नहीं देती जिसके चलते रोहिंग्या शरणार्थियों को देश में शरण दी जाए।
देश में कुछ संगठन कर रहे समर्थन
देश में कुछ ऐसे भी संगठन हैं जो सरकार पर रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने का दबाव बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी, नेशनल कॉफ्रेंस के उमर अब्दुला और कई अन्य क्षेत्रीय दल रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने की मांग करते रहे हैं। कुछ एनजीओ रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के अलावा कई अन्य संगठन भी भारत सरकार पर इसके लिए दबाव बना रहे हैं।
जनकल्याण का पैसा करना होगा
भले ही कागजों में रोहिंग्या का तादाद 40 हजार बताई जा रही हो, लेकिन असल में इनकी संख्या लाखों में है। ऐसे में एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि सरकार अगर लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देती है तो उसे रोहिंग्या को बसाने के लिए और उनकी देखरेख के लिए उन पर करोड़ों-अरबों रुपया खर्च करना पड़ेगा। जो धनराशि सरकार अपने नागरिकों के कल्याण के लिए खर्च करनी चाहिए, वह धनराशि रोहिंग्या शरणार्थियों पर खर्च होती है, तो इससे देश के नागरिकों का सीधा नुकसान होता है। देश के नागरिक भी यही सवाल खड़ा कर रहे हैं। देश के नागरिकों में आम राय यही है कि जब देश के सामने पहले से समस्याएं हैं तो देश रोहिंग्या को शरण देकर मुसीबत क्यों मोल लेना चाहता है।
वोट बैंक का जरिया न बन जाएं रोहिंग्या
रोहिंग्या को लेकर एक और आशंका गहरा रही है। यह आशंका भी निराधार नहीं है। कुछ राजनीतिक दल और क्षेत्रीय पार्टियां रोहिंग्या को वोटबैंक के रूप में देख रही हैं। वोटबैंक की राजनीति के कारण क्षेत्रीय पार्टियां स्वयं अपने एजेंटों के माध्यम से अवैध शरणार्थियों को बसाने का काम करती हैं। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर पहले से ही वोटबैंक और तुष्टीकरण की राजनीति के आरोप लगते रहे हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर की कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी रोहिंग्या को अपना वोटबैंक बनाकर राजनीति करने की मंशा रखती हैं। इसी कारण से ये पार्टियां रोहिंग्या शरणार्थियों का पुरजोर समर्थन कर रही हैं। मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति के कारण बांग्लादेशी शरणार्थियों को पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में बसाया गया। इसके कारण पश्चिम बंगाल, असम और बिहार की आबादी का समीकरण बिगड़ चुका है। बंगाल के 18 जिलों में हिन्दुओं की जनसंख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। तीन जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं। असम में मुस्लिम आबादी बढ़कर 30 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है।
विवादित रहा है रोहिंग्या का इतिहास
रोहिंग्या का इतिहास पर अगर नजर डालें तो तस्वीर पूरी तरह से साफ हो जाती है। रोहिंग्या मुसलमानों की जून 2012 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में स्थानीय बौद्धों के साथ जातीय हिंसा हुई। इस जातीय संघर्ष में लगभग 200 लोग मारे गए जिनमें मुसलमान और बौद्ध दोनों थे। इसके बाद रोहिंग्या ने अक्टूबर 2016 में 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी और कई पुलिस चौकियों पर हमले किए। छिटपुट घटनाएं लगातार होती रहीं, लेकिन इसी वर्ष 25 अगस्त को रखाइन प्रांत में रोहिंग्या घुसपैठियों ने दर्जनों पुलिस पोस्ट और एक आर्मी बेस पर हमला करके सरकार की सत्ता को ही चुनौती दे दी। जवाबी कार्रवाई में करीब 400 लोगों की जान चली गई और म्यांमार से रोहिंग्या को खदेड़ने की कार्यवाही आरंभ हुई।
मानवीयता और सहिष्णुता के नाम पर आत्मघात कब तक
सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश मानवीयता और सहिष्णुता के नाम पर आत्मघात कब तक सहन करेगा। इससे सीधे देश के संसाधनों को नुकसान पहुंचता है। साथ ही जो संसाधन सरकार और राजनीतिक दलों को देशवासियों के लिए नीतियां-योजनाएं बनाने और जनकल्याण में उपयोग करना चाहिए, वे संसाधन रोहिंग्या पर खर्च करना कहां की बुद्धिमानी है। मानवीयता और सहिष्णुता का अर्थ तभी तक होता है, जब तक देश की सुरक्षा को कोई खतरा न हो। रोहिंग्या शरणार्थियों में सबसे बड़ा सवाल देश की सुरक्षा व्यवस्था का ही है और मानवीयता और सहिष्णुता के नाम पर देश की सुरक्षा को बलि नहीं चढ़ाया जा सकता।