‘उप्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग वाली याचिका’: CJI बोले- आगे बहस की तो लगाएँगे भारी जुर्माना, याचिका खारिज

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में चल रही योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की माँग करने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दी है। इस याचिका में संविधान के अनुच्छेद 356 (केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में राज्य सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार) का प्रयोग करने की माँग की गई थी।

सीआर जया सुकिन नाम के एक अधिवक्ता ने यह याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने की। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में मनमाने ढंग से गैर-न्यायिक हत्याएँ हो रही हैं। साथ ही केंद्र सरकार द्वारा इन मामलों में कोई दिशा-निर्देश न जारी किए जाने की भी बात कही। इस पर CJI बोबडे ने पूछा कि वो किन आँकड़ों के आधार पर ऐसा कह रहे हैं?

उन्होंने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता ने अन्य राज्यों के आपराधिक आँकड़ो का अध्ययन किया है? इस पर जया ने दावा किया कि देश में जितनी भी आपराधिक घटनाएँ होती हैं, उनमें से 30% सिर्फ यूपी में ही होते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सवाल पूछा गया कि इससे वादी के मौलिक अधिकारों का कैसे हनन होता है? इस पर जया सुकिन कहने लगे कि वो भारत देश के नागरिक हैं। संतोषजनक और स्पष्ट जवाब न मिलने पर उन्हें चेतावनी दी गई।

CJI बोबडे ने उन्हें चेताया कि अगर वो आगे इसी तरह बहस करते रहे तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। तत्पश्चात उन्होंने याचिका ख़ारिज कर दी। अपनी याचिका में ने सुकिन ने पिछले 1 वर्ष में यूपी में हुई घटनाओं के आधार पर ये माँग की थी। हाथरस मामला, डॉक्टर कफील खान केस, AMU में ‘पुलिस द्वारा हिंसा और ज्यादती’, CAA विरोधियों के पोस्टर सार्वजनिक करने और गौतम बुद्ध नगर में अस्पताल में बेड की कमी की वजह से एक गर्भवती महिला की मृत्यु जैसी ख़बरों को आधार बनाया था।

साथ ही उन्नाव मामले में पीड़ित परिवार की सुरक्षा में विफल रहने के आरोप के साथ-साथ यूपी को याचिका में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित करार दिया गया था। NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के आँकड़ों को आधार बनाते हुए दावा किया गया था कि भारत में 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,05,861 मामले दर्ज किए गए और इनमें से उत्तर प्रदेश की 59,853 घटनाएँ थीं।

योगी आदित्यनाथ की सरकार पर गैरकानूनी, मनमाने, सनकपन और अनुचित तरीके से काम करने का आरोप लगाते हुए कहा गया था कि सत्ता के अधिकारों के दुरुपयोग हो रहा है और सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक अभिव्यक्ति आज़ादी पर बंदिश है। इतना ही नहीं, दलितों के खिलाफ अत्याचार बढ़ने, जबरन बाल श्रम, ऑनर किलिंग, बेरोजगारी, बेरोजगारी, गरीबी और NGOs पर कार्रवाई सहित कई अन्य आरोप भी लगाए गए थे।

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