“मुंबई मा जलेबी ने फाफड़ा उद्धव ठाकरे आपडा” के नारे के संग, शिवसेना मुंबई में ‘वडा पाव’ छोड़कर गुजरातियों को ‘जलेबी ने फाफड़ा’ खिलाने में क्यों जुटी ?
मुंबई। ‘मराठा मानुष’ की बात करने वाली महाराष्ट्र की सत्ताधारी शिवसेना के सुर अचानक बदले-बदले नजर आ रहे हैं। अब ‘मराठी मानुष के बाप की मुंबई’ बताने वाली शिवसेना के नेताओं ने गुजराती समुदाय को लुभाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। मुंबई में अब शिवसेना वडा पाव की नहीं, बल्कि गुजराती समुदाय के लिए ‘जलेबी ने फाफड़ा’ जैसे कार्यक्रम आयोजित कर रही है। इसकी वजह ये है कि आने वाले समय में वहां बीएमसी समेत 10 नगर निगमों के चुनाव होने हैं। शिवसेना को लग रहा है कि बीते एक साल में उसने भाजपा नेतृत्व पर जिस तरह से निशाना साधा है, वह ऐसे ही कार्यक्रमों के जरिए ही गुजराती समुदाय का दिल फिर से जीत सकती है। क्योंकि, खासकर मुंबई में यह समुदाय एक बहुत बड़ा वोट बैंक माना जाता है।
'मुंबई मा जलेबी ने फाफडा, उद्धव ठाकरे आपडा'
कष्टकऱ्यांच्या वडापाववरुन शिवसेनेचा थेट जलेबी फाफडावर ताव…
शिवसेनेच्या जन्माशीही वडापावचं घट्ट नातं आहे हे नवी शिवसेना विसरणार नाही अशी अपेक्षा….
— saurabh koratkar (@saurabhkoratkar) January 5, 2021
चुनावी राजनीति ही सही, लेकिन ‘मराठी मानुष के बाप की मुंबई’ जैसी विचारधारा वाली पार्टी शिवसेना को अब मुंबई समेत तमाम शहरों में गुजरातियों को खुश करने के लिए मजबूर होना पड़ गया है। बीएमसी (BMC) समेत 10 नगर निगमों के लिए होने वाले चुनावों से पहले पार्टी ने गुजरातियों के लिए मुंबई और महाराष्ट्र के मशहूर ‘वडा पाव’ को छोड़कर गुजराती डिश ‘जलेबी और फाफड़ा’ का कार्यक्रम आयोजित करना शुरू कर दिया है। इसकी शुरुआत मंगलवार को मुंबई से पार्टी के नेता हेमराज शाह ने की है, जिन्होंने वहां गुजराती समुदाय के लिए एक विशेष कार्यक्रम आयोजित करने का ऐलान किया है। जब उनसे इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब में कहा, ‘हर कोई अपने वोटरों को एकजुट करता है। मुंबई में ऐसा करने में क्या गलत है? मैं सिर्फ मुंबई में रहने वाले गुजराती भाइयों और बहनों को याद दिलाना चाहता हूं कि वह बालासाहेब ठाकरे ही थे, जिन्होंने बाबरी दंगों के दौरान कई गुजरातियों की जिंदगियां बचाने में मदद की थी।’
"केम छो वरळी"च्या सुपरहिट यशानंतर शिवसेनेचा "मुंबई मा जलेबी ने फाफड़ा उद्धव ठाकरे आपडा" 😜 आणि टापा मराठी अस्मितेच्या 😂 😂 😂 खायला फाफडा गुजरातचा…. pic.twitter.com/YoTwSTDpck
— Harish Patil (@iam_hari123) January 4, 2021
इस शिवसेना नेता के दफ्तर से जारी प्रेस रिलीज में बिना नाम लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर भी निशाना साधने की कोशिश की गई है; और साथ ही साथ 2019 में भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिलाने पर सफाई देने की भी कोशिश की गई है। इसमें लिखा गया है, ‘संकीर्ण सोच और बीजेपी की गुजराती लीडरशिप के अहंकार के कारण, जो कि मराठी को नेतृत्व करने का अवसर नहीं देना चाहते थे, उद्धव ठाकरे को उनसे सत्ता छीन लेनी पड़ी। इसलिए बीजेपी नेतृत्व बेचैन है।’ इसमें यहां तक कहा गया है कि ‘बीजेपी यह बात पचा नहीं पा रही है कि मुख्यमंत्री मुंबई को कोविड-19 संकट से बाहर निकाल पाने में सफल रहे हैं और राज्य को बहुत ही अच्छे तरीके से चला रहे हैं। सरल और सामान्य वर्क स्टाइल की वजह से उन्होंने यह निश्चित किया है कि सबके साथ एक तरह से व्यवहार हो। बीजेपी को इसी से परेशानी हो रही है। इसलिए वो अब दावा कर रहे हैं कि वो मुंबई नगर निगम (BMC) से भगवा झंडा उतार देंगे।’
"केम छो वरली" च्या अफाट यशानंतर शिवसेनेचा "मुंबई मा जलेबी ने फाफड़ा" उद्धव ठाकरे आपडा
आणि गप्पा मराठी अस्मितेच्या 😂 😂 😂 pic.twitter.com/7BXSHamKIz
— अघोरी 🚩 (@BhagwaDhari03) January 4, 2021
शिवसेना नेता ने माना है कि बीएमसी का चुनाव पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है और इसलिए मुंबई के गुजराती वोटरों में जागरुकता फैलाने के लिए उनकी विशेष बैठक बुलाई गई है। गुजराती वोटरों पर डोरे डालने के लिए पार्टी ने नया नारा तैयार किया है- “मुंबई मा जलेबी ने फाफड़ा उद्धव ठाकरे आपडा” । यानि अगर इसे हिंदी में समझें तो ‘मुंबई में जलेबी और फाफड़ा और उद्धव ठाकरे अपने हैं।’
मुंबई मा जलेबी ने फाफडा,
उद्धव ठाकरे आपडा…शिवसैनिक झालाय गरीब-बापडा,
सत्ताधाऱ्यांना मराठी मतदारच मारतील झापडा! pic.twitter.com/5bPsAiJbgK— Kirtikumar Shinde (@KirtikumrShinde) January 5, 2021
देश के कुछ छोटे राज्यों से भी ज्यादा बजट वाले बीएमसी का चुनाव 2022 में होना है। लेकिन, उससे पहले भी महाराष्ट्र में कई नगर निगमों के चुनाव होने हैं। 227 सीटों वाली बीएमसी में अभी बीजेपी के 82 और शिवसेना के 86 पार्षद हैं। एक आंकड़े के मुताबिक मायानगरी में करीब 35 लाख गुजराती आबादी है, जिनमें से 15 लाख मतदाता हैं। इस समुदाय के बारे में कहा जाता है कि बीएमसी के चुनाव में कम से कम 40 सीटों पर यह निर्णायक भूमिका में हैं। आमतौर पर माना जाता है कि यह समाज भाजपा समर्थक है और शिवसेना को अब यह डर सताने लगा है। क्योंकि, अगर इस समाज ने 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद के हालातों का बदला लिया तो शिवसेना बीएमसी की सत्ता से बेदखल हो सकती है; और शिवसेना के लिए बीएमसी से बाहर होना उसकी सियासी सेहत के लिए सबसे बुरा सपना साबित हो सकता है।