बंगाल हिंसा : एनएचआरसी ने हाईकोर्ट में पेश की रिपोर्ट, राज्य में कानून का शासन नहीं, शासक का कानून, हिंसा के पीछे राजनीतिक-नौकरशाही-आपराधिक गठजोड़, CBI जाँच की सिफारिश
न्यूज़ डेस्क। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बंगाल में चुनाव बाद हिंसा पर अपनी अंतिम रिपोर्ट कलकत्ता हाई कोर्ट को सौंपी दी है। 50 पेज की इस रिपोर्ट में राज्य की ममता सरकार की कड़ी आलोचना की गई है। एनएचआरसी की जांच टीम ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की धरती बंगाल में ‘कानून का राज’ नहीं है, बल्कि यहां ‘शासक का कानून’ चल रहा है। रिपोर्ट में चुनाव बाद हिंसा की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की गई है। कहा गया है कि मामलों की सुनवाई राज्य के बाहर फास्ट ट्रैक अदालत गठित कर हो।
बीजेपी समर्थकों को सबक सीखाने के लिए हिंसा
एनएचआरसी की जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में राज्य की भयावह तस्वीर पेश की है। राज्य में चुनाव बाद हुई हिंसा के दौरान हत्या और दुष्कर्म के बहुत सारे मामले सामने आए हैं। लेकिन पीड़ितों को राज्य सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली। ये हिंसा सत्ताधारी टीएमसी के समर्थकों द्वारा बीजेपी समर्थकों को सबक सीखने के लिए की गईं। यह मुख्य विपक्षी दल के समर्थकों के खिलाफ सत्ताधारी पार्टी के समर्थकों द्वारा बदले की हिंसा थी। इसके नतीजे से हजारों लोगों के जीवन और आजीविका में मुश्किलें उत्पन्न हुईं और आर्थिक रूप से उनका गला घोंट दिया गया। कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ। लेकिन कई महिलाएं डर की वजह से अपने से साथ हुई यौन हिंसा की जानकारी नहीं दे पायी। जब स्थानीय पुलिस से सुरक्षा नहीं मिली तो लोगों को मजबूर हो कर घर छोड़ना पड़ा।
National Human Rights Comm enquiry report makes damning disclosures on gory violence in West Bengal after May 2 win by TMC pic.twitter.com/hPwOzoaKI9
— The Times Of India (@timesofindia) July 15, 2021
हिंसा राजनीतिक-नौकरशाही-आपराधिक गठजोड़ का नतीजा
रिपोर्ट के अनुसार राज्य में हिंसा राजनीतिक-नौकरशाही-आपराधिक गठजोड़ का नतीजा है। इसके तहत कानून के शासन, राजनीतिक बहुलवाद और स्वतंत्र, निष्पक्ष और सुरक्षित मतदान सहित लोकतंत्र के सभी स्तंभों पर हमला किया गया। कलकत्ता हाईकोर्ट के हस्तक्षेप और एनएचआरसी की जांच टीमों के दौरों के बावजूद राज्य में हिंसा का दौर जारी है। खासकर ग्रामीण इलाकों में धमकी भरे कॉल, जबरन वसूली और बदले की कार्रवाई जारी है। चुनाव नतीजे आने के दो महीने बाद भी हालत में सुधार न होना समस्या की गंभीरता और राज्य सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।
कानून तोड़ने वाले खुद कानून लागू करने वाले बन गए
जिन लोगोंं ने बीजेपी को वोट दिया था। पार्टी के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया था और मतदान बूथ पर पोलिंग एजेंट के रूप में काम किया था। वे लोग खास तौर पर टीएमसी के गुंडों के निशाने पर है। उन्हें धमकियां दी जा रहीं कि या तो टीएमसी के शरण में आ जाओ या राज्य छोड़ दो। टीएमसी के गुंडे पुलिस के साथ मिलकर बीजेपी समर्थकों का उत्पीड़न कर रहे हैं। उनके घरों पर हमले और लूटपाट कर रहे हैं। कानून तोड़ने वाले खुद कानून लागू करने वाले बन गए हैं। हिंसा करने वालों को कानून का कोई डर नहीं है, क्योंकि उन्हें सत्ताधारी दल और प्रशासन का संरक्षण प्राप्त है।
गरीब और आम लोगों का पुलिस पर से भरोसा उठ गया है
पीड़ितों ने जांच टीम के सामने जो आपबीती बतायी वो रोंगटे खड़े कर देने वाली है। गरीब और आम लोगों का पुलिस पर से भरोसा उठ गया है। लगभग सभी पीड़ितों ने जांच टीम को बताया कि जब उनपर हमला हुआ तो उन्होंने पुलिस से मदद के लिए कॉल किया, लेकिन पुलिस से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। पुलिस ने उनके फोन कॉल का जवाब नहीं दिया। पुलिस आयी भी तो केवल मूकदर्शक बनकर खड़ी रही, जबकि गुंडे उत्पात मचाते रहे।
पुलिस-अपराधियों की मिलीभगत से पीड़ितों को इंसाफ मिलना मुश्किल
पुलिस और हिंसा करने वाली की मिलीभगत की वजह से हालात काफी खराब हो चुके हैं। पीड़ितों को इंसाफ मिलना मुश्किल हो रहा है। क्योंकि पुलिस पीड़ितों को न्याय दिलाने की जगह उन्हें झूठे मामलों में फंसा रही है। कोई जगहोंं पर तो आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराने पर उल्टे पीड़ितों के खिलाफ ही काउंटर मामला दर्ज किया गया। शिकायत के बावजूद पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। यहां तक कि पुलिस ने आरोपियों से समझौता करने के लिए दबाव बनाया। पुलिस ने हत्या के मामले को भी सामान्य मौत बता कर मामले को रफादफा कर दिया।
हाईकोर्ट के निर्देश पर एनएचआरसी ने गठित की जांच टीमें
गौरतलब है कि बंगाल में चुनाव बाद हिंसा के मामले में सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट ने मानवाधिकार आयोग को एक जांच कमेटी गठित कर मामले की जांच का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने राजीव जैन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस टीम में अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष अतीफ रशीद, महिला आयोग की डॉ. राजूबेन देसाई, एनएचआरसी के डीजी (इंवेस्टिगेशन) संतोष मेहरा, पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के रजिस्ट्रार प्रदीप कुमार पंजा, राज्य लीगल सर्विस कमीशन के सचिव राजू मुखर्जी, डीआइजी मंजिल सैनी शामिल रहे।
PM Modi knows very well that there is no rule of law in UP. How many commissions has he sent there? So many incidents, from Hathras to Unnao, have taken place. Even journalists are not spared. They give a bad name to Bengal. Maximum violence was pre-poll: WB CM Mamata Banerjee pic.twitter.com/fYIdHKdZJ8
— ANI (@ANI) July 15, 2021
एनएचआरसी की सात अलग-अलग टीमों ने की जांच
कोर्ट के आदेश के बाद कमेटी हिंसा प्रभावित गांवों से लेकर विभिन्न जगहों पर गई जहां चुनाव बाद हिंसा की शिकायतें आई थी। आयोग की टीम ने पाया कि पूरे राज्य में ऐसी स्थितियां हैं। कुछ प्राथमिक शिकायतें लेने के बाद टीम वापसी लौट आई। इसके बाद पांच टीमों का गठन किया गया। बाद में दो और टीमें बढ़ा दी गईं। इन टीमों ने राज्यभर में दौरा किया और सुनवाई की। इसके अलावा मुर्शिदाबाद, कोलकाता, पूर्व मेदिनीपुर, हावड़ा, पूर्व बर्द्धमान में कैंप लगाकर सुनवाई की गई। इन टीमों ने 20 दिनों तक लगातार काम किया और 311 दौरा किया और सुनवाई शिविर लगाए। इस दौरान दुष्कर्म, हत्या, आगजनी सहित विभिन्न गंभीर अपराधों से जुड़ी 1979 शिकायतें सामने आईं, जो ममता सरकार के आतंक, तानाशाही और खेला होबे का पुख्ता सबूत है।