बिहान योजना से आत्मनिर्भरता की मिसाल बनीं शकुन्तला शार्दुल
रायपुर।
कभी दूसरों की खेतों में मजदूरी कर अपने परिवार का गुजारा करने वाली शकुन्तला शार्दुल आज अपने ही खेतों में मेहनत के बल पर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। उनकी यह कहानी इस बात की मिसाल है कि अगर अवसर और मार्गदर्शन मिले तो महिलाएँ अपने जीवन की दिशा बदल सकती हैं।शकुन्तला वर्ष 2015 में अपने जिला कोण्डागांव के सिलेंदरी स्व-सहायता समूह से जुड़ीं। समूह के माध्यम से उन्होंने पहली बार लोन लेकर सेंटरिंग प्लेट का व्यवसाय शुरू किया, लेकिन अपेक्षित लाभ न मिलने पर उन्होंने दिशा बदली। असफलता से निराश होने के बजाय शकुन्तला ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर सब्जी की खेती शुरू करने का निर्णय लिया। समूह से मिले ऋण की मदद से उन्होंने खेत में बोरवेल करवाया, जिससे सिंचाई की सुविधा प्राप्त हुई। शुरुआत में उन्होंने मटर, बरबटी और भिंडी की खेती की, जो काफी सफल रही और अच्छा मुनाफा मिला। इस सफलता से उत्साहित होकर शकुन्तला ने पुनः बिहान योजना से लोन लेकर ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगवाई। अब उन्होंने खेती को बड़े पैमाने पर विस्तार देते हुए बैंगन, टमाटर, भिंडी और मटर जैसी फसलों की बुआई शुरू की।
आज शकुन्तला की मेहनत का फल यह है कि उनकी खेती से प्रत्येक सीजन में अच्छा मुनाफा हो रहा है। पहले जहाँ परिवार को रोजमर्रा की जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ता था, वहीं अब वही परिवार आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बन चुका है। शकुन्तला के पति खेती में उनका पूरा सहयोग करते हैं और उनका बेटा पढ़ाई कर रहा है। उन्होंने बताया कि सब्जियों की खेती से उन्हें अब लगभग 15 हजार रुपए मासिक आय प्राप्त हो रही है।बिहान योजना ने शकुन्तला शार्दुल जैसी हजारों ग्रामीण महिलाओं के जीवन में परिवर्तन की नई रोशनी जगाई है। इस योजना के माध्यम से महिलाएँ स्व-सहायता समूहों से जुड़कर छोटे-छोटे व्यवसाय, खेती, पशुपालन और हस्तशिल्प जैसे कार्यों के जरिए आर्थिक स्वावलंबन की ओर अग्रसर हो रही हैं। इससे न केवल उनकी आय बढ़ी है, बल्कि आत्मविश्वास और सामाजिक सम्मान भी हासिल हुआ है। शकुन्तला मुस्कुराते हुए कहती हैं कि “बिहान योजना ने हमें खुद पर विश्वास करना सिखाया है। अब हम न सिर्फ अपने घर की जिम्मेदारी निभा रही हैं, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं।”

