आपातकाल में संघर्ष करने वालों के बलिदान को देश कभी नहीं भूल पाएगा- प्रधानमंत्री मोदी

न्यूज़ डेस्क। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को आपातकाल के 45 साल पूरे होने पर लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष करने वालों को याद किया और कहा कि उनके बलिदान को देश भूल नहीं पाएगा। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अपने ट्वीट संदेश में कहा कि आज से ठीक 45 वर्ष पहले देश पर आपातकाल थोपा गया था। उस समय भारत के लोकतंत्र की रक्षा के लिए जिन लोगों ने संघर्ष किया, यातनाएं झेलीं, उन सबको मेरा शत-शत नमन! उनका त्याग और बलिदान देश कभी नहीं भूल पाएगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट के साथ एक वीडियो भी शेयर किया। इस वीडियो में प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल 2019 के जून महीने में रेडियो पर प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 54वें संस्करण के कुछ अंश शेयर किए हैं। जिसमें वह आपातकाल के बारे में बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, ‘जब देश में आपातकाल लगाया गया तब उसका विरोध सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं रहा था, राजनेताओं तक सीमित नहीं रहा था, जेल के सलाखों तक, आन्दोलन सिमट नहीं गया था। जन-जन के दिल में एक आक्रोश था। खोये हुए लोकतंत्र की एक तड़प थी। दिन-रात जब समय पर खाना खाते हैं तब भूख क्या होती है इसका पता नहीं होता है वैसे ही सामान्य जीवन में लोकतंत्र के अधिकारों की क्या मज़ा है वो तो तब पता चलता है जब कोई लोकतांत्रिक अधिकारों को छीन लेता है।

आपातकाल में, देश के हर नागरिक को लगने लगा था कि उसका कुछ छीन लिया गया है। जिसका उसने जीवन में कभी उपयोग नहीं किया था वो भी अगर छिन गया है तो उसका एक दर्द, उसके दिल में था और ये इसलिए नहीं था कि भारत के संविधान ने कुछ व्यवस्थायें की हैं जिसके कारण लोकतंत्र पनपा है। समाज व्यवस्था को चलाने के लिए, संविधान की भी जरुरत होती है, कायदे, कानून, नियमों की भी आवश्यकता होती है, अधिकार और कर्तव्य की भी बात होती है लेकिन, भारत गर्व के साथ कह सकता है कि हमारे लिए, कानून नियमों से परे लोकतंत्र हमारे संस्कार हैं, लोकतंत्र हमारी संस्कृति है, लोकतंत्र हमारी विरासत है और उस विरासत को लेकर के हम पले-बड़े लोग हैं और इसलिए उसकी कमी देशवासी महसूस करते हैं और आपातकाल में हमने अनुभव किया था और इसीलिए देश, अपने लिए नहीं, एक पूरा चुनाव अपने हित के लिए नहीं, लोकतंत्र की रक्षा के लिए आहूत कर चुका था। शायद, दुनिया के किसी देश में वहां के जन-जन ने, लोकतंत्र के लिए, अपने बाकी हकों की, अधिकारों की, आवश्यकताओं की, परवाह ना करते हुए सिर्फ लोकतंत्र के लिए मतदान किया हो, तो ऐसा एक चुनाव, इस देश ने 77 (सतत्तर) में देखा था।

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