मिट्टी के दीये की बढ़ी मांग से कुम्हारों के मन में नई आस जगी
इस साल दीपावली के मौके पर पूरे छत्तीसगढ़ समेत नक्सल प्रभावित ज़िला नारायणपुर में भी बिजली की झालर और अन्य बिजली के उत्पादों की बिक्री पर खासा असर पड़ेगा। ऐसे में उन गरीब तबके के लोगों के मन में यह आस जग गई है जिनकी दिवाली हर साल दिवाली फीकी हो जाया करती थी। बिजली की झालरों की जगह लेने के लिए मिट्टी से बने खूबसूरत दीये (दीपक) पूरी तरह से तैयार होकर बाज़ार में बिकने के लिए उतर गए हैं। ये दीये इस बार लोगों के घरों को रौशन करेंगे। मिट्टी के दीये (दीपक) बनाने वोले परिवारों को भी है उम्मीद कि इस बार उन्हें अच्छा मुनाफा होगा। लोगों की बिजली सामग्रियों से बढ़ती बेरुखी का असर इस दिवाली पर होने वाली सजावट में भी देखने को मिलेगा। ग्राहक झालरों से दूरी बना रहा है। ग्राहकों के इस फैसले के बाद परम्परागत दीयों का कारोबार बढऩे लगा है। जिले में भी मांग बढ़ी तो कुम्हारों के चेहरे खिले हुए दिखने लगे हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने प्रदेशवासियों से दीपावली सहित अन्य त्यौहारों के समय में छत्तीसगढ़ के कुम्हारों, हस्तशिल्पियों, बुनकरों एवं अन्य कारीगरों द्वारा बनाये गए दीयों, वस्त्र, सजावट की वस्तुएं, उपहार एवं अन्य सामग्री की अधिकाधिक खरीदी करने की अपील से कुम्हारों की आस दोगुनी हुई है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि आपके इस छोटे से प्रयास से इन छोटे-छोटे कामों में लगे राज्य के लाखों लोगों के जीवन में खुशियां आ सकेंगी।
छत्तीसगढ़ के मुखिया श्री बघेल की अपील के बाद इन दिनों हर घर में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले ओर विभिन्न प्रकार के डिजाइनों के दीये (दीपक) बनाने वाले बाज़ारों -फुटपाथ पर देखे जा सकते हैं। ग्राम एड़का और जिला मुख्यालय के कुम्हारपारा में लगभग दो दशक से अधिक समय से मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाने का काम करने वाले बैसाखू राम और राजूराम कुम्हारों का कहना है कि मुख्यमंत्री की जनता से मिट्टी के दीये एवं मिट्टी से बनी अन्य सामग्री का उपयोग करने की अपील के बाद इस बार उनके पास दीये और अन्य सामग्री की माँग बढ़ गई है। हर साल सामान्य रूप से मिट्टी के दीपक बनाते रहे हैं। लेकिन इस बार दीपक की डिजाइन और खूबसूरत कर दी गई है जिससे लोगों को यह पसंद आ रहे है। अच्छा ख़ासा मुनाफ़ा भी होने की उम्मीद है । अभी बिक्री ने गति पकड़ी है।
इस बार यह मिट्टी के दीये उन बिजली की झालरों को कड़ी टक्कर देंगे जिन्होंने गरीबों की रोजी रोटी छीन ली है। शहर से हटकर गांव के लोग भी मिट्टी के दीपक खरीदने आ रहे हैं और हर साल के मुकाबले इस साल मिट्टी से बने दीपकों की खरीद-फरोख्त में इजाफा हुआ हो रहा है । इस बार उम्मीद है कि इस बार कुम्हारों के बनाए हुए दीपक की लागत के साथ उन्हें मुनाफा भी जरूर मिलेगा।
बाज़ारों में ग्राहकों को लुभाने के लिए मिट्टी के परम्परागत दीयों के साथ डिजायनर, रंग-बिरंगे और आकर्षक आकार वाले दीये भी मिल रहे हैं। दीयों के पारम्परिक स्वरूप से आकर्षक लुक ग्राहकों को ज्यादा पसंद आ रहा है। आकर्षक डिजायन की वजह से बच्चे दीयों को खरीदना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। कुम्हारों का कहना है कि बीते कुछ सालों में दीयों की खरीदारी औपचारिकता भर रह गई थी। अब ग्राहक दीपावली पर रोशनी के लिए बिजली की झालरों की जगह मिट्टी के दीपक से घरों को रोशनी से सजाने का मन बना चुके हैं। जिले के कुम्हार कारीगरों की मानें तो बीते कई सालों से मंद पड़े दीया कारोबार को इस बार संजीवनी मिलने की उम्मीद है। कुम्हार पिछले सालों की तुलना में इस बार ज्यादा बिक्री की उम्मीद कर रहे हैं। जिला प्रशासन द्वारा भी लोगांे से मिट्टी के दीये एवं अन्य सजावटी सामान खरीदने की अपील की गयी है। प्रशासन ने मिट्टी की सामग्री बेचने वालों के लिए सहुलियतें और सुविधायें के साथ ही कोई भी कर नहीं वसूलने के निर्देश दिये हैं।
*शशिरत्न पाराशर