85 साल पुरानी 5 मंजिला इमारत ने टूटने से किया ‘इनकार’, खुद चलकर पहुंची 203 फीट दूर नई जगह पर

न्यूज़ डेस्क। शंघाई के नागरिकों ने अक्टूबर में शहर के पूर्वी जिले हुआंग्पू में चौंका देने वाला नजारा देखा, एक इमारत ‘पैदल’ चल रही थी। एक 85 साल पुराने प्राइमरी स्कूल को एक नई तकनीक का इस्तेमाल करके एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया. लोग एक चलती हुई इमारत को देखकर हैरान थे। ऐतिहासिक इमारतों को संरक्षित करने के शहर के ताजा प्रयासों के तहत इंजीनियरों ने प्रोजेक्ट के टेक्निकल सुपरवाइजर लैन वूजी ने बताया कि इंजीनियरों ने पांच मंजिला इमारत के नीचे करीब 200 मोबाइल सपोर्ट्स लगाए।

बिल्डिंग के नीचे लगाए गए इन सपोर्ट्स ने रोबोट पैरों की तरह काम किया। ये दो भागों में बंटे हुए थे जो बारी-बारी ऊपर और नीचे बढ़ते और इंसानों के कदमों की नकल करते। लैन ने बताया कि इसमें लगे सेंसर इमारत के आगे बढ़ने को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। लैन की कंपनी शंघाई इवोल्यूशवन शिफ्ट ने 2018 में यह नई तकनीक विकसित की है। उन्होंने कहा कि ये बिल्डिंग को बैसाखी देने जैसा है ताकि वो खड़ी हो पाए और एक जगह से दूसरी जगह चल पाए।

CNN की रिपोर्ट में इस्तेमाल किए गए टाइमलैप्स शॉट में इमारत को छोटे-छोटे कदमों से चलते हुए देखा जा सकता है। हुआंगपु जिला सरकार ने एक बयान में कहा कि लागेना प्राइमरी स्कूल का निर्माण 1935 में शंघाई के पूर्व फ्रांसीसी रियायत के नगरपालिका बोर्ड ने कराया गया था। कमर्शियल और ऑफिस कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए इसे एक से दूसरी जगह शिफ्ट किया गया।

लैन ने समझाया कि मजदूरों को मोबाइल सपोर्ट लगाने के लिए पहले बिल्डिंग की चारों ओर से खुदाई करनी थी. बिल्डिंग के पिलर्स को काटने के बाद रोबोट पैरों को ऊपर की ओर बढ़ाया गया ताकि इमारत को आगे बढ़ाने से पहले उठाया जा सके।

18 दिनों की मेहनत के बाद इमारत को 21 डिग्री घुमाया गया और उसे 62 मीटर (203 फीट) दूर अपने नए स्थान पर ले जाया गया। आखिर बिल्डिंग की शिफ्टिंग 15 अक्टूबर को पूरी हो गई। सरकारी बयान में कहा गया है कि इस प्रोजेक्ट के तहत पहली बार शंघाई में एक ऐतिहासिक इमारत को ‘वॉकिंग मशीन’ तकनीक की मदद से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया है।

हाल के दशकों में चीन में तेजी से बढ़ते आधुनिकीकरण ने कई ऐतिहासिक इमारतों को ऊंची-ऊंची और चमकदार बिल्डिंगों के निर्माण के लिए अपनी कुर्बानी देनी पड़ी. देशभर में विलुप्त होती वास्तुशिल्प विरासत के बारे में सभी की चिंताएं बढ़ गईं। कई शहरों ने नए संरक्षण अभियान शुरू किए जिसमें पुरानी इमारतों को ध्वस्त करने के बजाए उन्हें एक से दूसरी जगह शिफ्ट करना शामिल था।

ऐतिहासिक वास्तुकला के प्रति आधिकारिक उदासीनता का पता कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ जेडॉन्ग के शासनकाल से लगता है। 1966 से 1976 तक विनाशकारी सांस्कृतिक क्रांति के दौरान ‘फोर ओल्ड्स’ (पुराने रीति-रिवाज, संस्कृति, आदतों और विचारों) पर उनके युद्ध के हिस्से के रूप में असंख्य ऐतिहासिक इमारतों और स्मारकों को नष्ट कर दिया गया।

CNN की रिपोर्ट के मुताबिक लैन ने कहा कि रीलोकेशन पहली पसंद नहीं है लेकिन यह इमारत को ध्वस्त किए जाने से बेहतर है। उन्होंने कहा कि किसी स्मारक को रीलोकेट करने के लिए कंपनियों और डेवलेपर्स को सरकार से अनुमति लेने जैसे सख्त नियमों से गुजरना पड़ता है। लेन ने कहा कि सरकार ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण पर अधिक जोर दे रही है। हाल के सालों में ये प्रगति देखकर मुझे खुशी हुई। बिल्डिंग को एक से दूसरी जगह ले जाने के कई तरीके हैं। इसे रेल सेट की मदद से खिसकाया जा सकता है या वाहनों की मदद से खींचा जा सकता है, लेकिन स्कूल की इस बिल्डिंग के सामने एक नई चुनौती थी।

न्यूज एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक लैगेना प्राइमरी स्कूल का वजन 7600 टन है और इसे रीलोकेट करने में सबसे बड़ी चुनौती थी इसके T आकार की बनावट. इससे पहले जिन इमारतों को शिफ्ट किया गया वो सभी चौकोर या आयताकार थीं। लेन ने कहा कि इस तरह की बनावट का मतलब है कि फिसलने या खींचने के आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले तरीके इस पर काम न करें। इमारत को घुमाना और सीधे रास्ते के बजाय घुमावदावर रास्ते से इसे ले जाना भी कंपनी के लिए एक नई चुनौती था। लेन ने कहा कि मैंने अपने 23 साल के अनुभव में किसी भी कंपनी को नहीं देखा जो किसी इमारत को घुमावदार रास्ते से ले जा पाए।

शिन्हुआ के मुताबिक एक्सपर्ट्स और टेक्नीशियन ने ‘वॉकिंग मशीन’ पर फैसला लेने से पहले संभावनाओं पर चर्चा की और कई तरीकों का ट्रायल किया. लैन ने सीएनएन से बात करते हुए कहा कि वो इस प्रोजेक्ट की लागत को साझा नहीं कर सकते लेकिन उन्होंने कहा कि ये किसी इमारत को ध्वस्त किए जाने और उसके दोबारा निर्माण में आने वाले खर्च से काफी सस्ता है।

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