आजाद भारत में सबसे बड़ी लिंचिंग राजीव गांधी के दौर में हुई : भाजपा

नई दिल्ली। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मंगलवार को कहा कि कांग्रेस को मॉब लिंचिंग का मुद्दा उठाने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में लिंचिंग की सबसे बड़ी घटना राजीव गांधी के समय हुई थी। शेखावत की प्रतिक्रिया कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ट्वीट के कुछ घंटों बाद आई, जिसमें उन्होंने लिखा, “2014 से पहले, ‘लिंचिंग’ शब्द व्यावहारिक रूप से अनसुना था। थैंक यू मोदीजी।”

यहां पार्टी मुख्यालय में पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी के भाजपा में शामिल होने के बाद मीडिया से बात करते हुए शेखावत ने कहा, “मुझे लगता है कि कांग्रेस को लिंचिंग पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में इस तरह की सबसे बड़ी घटना मौजूदा कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के दौर में हुई थी।”

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने कहा, “राहुल गांधी भूल जाते हैं कि उनके पिता राजीव गांधी ने कांग्रेस सांसदों और कार्यकर्ताओं द्वारा 3,000 से अधिक सिखों की मॉब लिंचिंग का समर्थन किया था।”

राजीव गांधी की टिप्पणी, “जब भी बड़ा पेड़ गिरता है, धरती हिलती है, का जिक्र करते हुए एक अन्य भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, “यह सच है कि राहुल गांधी ने 2014 से पहले लिंचिंग के बारे में नहीं सुना, क्योंकि उनके पिता ने हजारों निर्दोष सिखों की हत्याओं की तुलना एक बड़े पेड़ के गिरने से की।”

सिरसा ने कहा, “राहुल गांधी ने पहली बार लिंचिंग शब्द सुना, जब कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद सिख विरोधी दंगों के लिए सलाखों के पीछे भेजा गया था।”

राहुल गांधी के ट्वीट का हवाला देते हुए भाजपा आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने कहा, “मिलिए राजीव गांधी, मॉब लिंचिंग के जनक से, जिन्होंने सिखों के खून से लथपथ जनसंहार को सही ठहराया। कांग्रेस ने सड़कों पर उतरकर ‘खून का बदला खून से लेंगे’ जैसे नारे लगाए। महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया, सिख पुरुषों के गले में जलते टायर लपेटे, जबकि नालों में फेंके गए जले हुए शवों को कुत्तों ने नोंचकर खाया।”

मालवीय ने कहा, “अहमदाबाद (1969), जलगांव (1970), मुरादाबाद (1980), नेल्ली (1983), भिवंडी (1984), दिल्ली (1984), अहमदाबाद (1985), भागलपुर (1989), हैदराबाद (1990), कानपुर (1992), मुंबई (1993)। यह सिर्फ एक छोटी सी सूची है, जिसमें नेहरू-गांधी परिवार की निगरानी में 100 से अधिक लोग मारे गए।”

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.