IMA की दुकान में तेल से लेकर पेंट तक: पैसे लेकर देता है सर्टिफिकेट, धंधे में कितनी कमाई, कोई हिसाब नहीं

न्यूज़ डेस्क। जहाँ एक तरफ ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA)’ बाबा रामदेव के पीछे पड़ा हुआ है और उन पर कोरोना वैक्सीन के खिलाफ अफवाह फैलाने का आरोप लगा रहा है, वहीं दूसरी तरफ ये संगठन खुद अजीबोगरीब तौर-तरीकों से रुपए कमाने में लगा हुआ है। प्रोडक्ट्स को ‘सर्टिफिकेट’ देने का ठेका लेने वाले IMA को क्यों न एक कमर्शियल कंपनी माना जाए? IMA कोई सरकारी या सरकार पोषित संस्था तो है नहीं, लेकिन इसका व्यवहार ऐसा है जैसे ये देश में मेडिकल नियामक संस्था हो।

IMA का कहना है कि ‘पतंजलि आयुर्वेद’ के प्रमोटर बाबा रामदेव जनता को डर दिखा कर उससे एक तरह की फिरौती वसूल रहे हैं और वैज्ञानिकों दवाओं को बदनाम कर के अपना व्यापार बढ़ा रहे हैं, जो कि एक ‘अक्षम्य अपराध’ है। बाबा रामदेव तो खुद कहते रहे हैं कि वो व्यापारी हैं और व्यापार तो दुनिया के किसी भी कोने में एक कानून सम्मत कार्य है। ईसाई मिशनरी चंगुल में फँसे IMA को खुद के गिरेबान में झाँकना चाहिए।

दरअसल, खुद IMA ने पिछले दरवाजे से रुपए कमाने के लिए कुछ हथकंडे अपनाए हैं। वो प्राइवेट कंपनियों के प्रोडक्ट्स को ‘सर्टिफिकेट’ देकर उनका प्रचार करता है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से नहीं कहता कि वो फलाँ प्रोडक्ट का प्रचार कर रहा है। ये किसी भी प्रोडक्ट को ‘स्वास्थ्य के लिए ठीक’ होने का सर्टिफिकेट बाँटता है। इसके लिए उन कंपनियों के साथ गुप्त समझौते होते हैं। IMA ये तक नहीं बताता कि वो कितने रुपए लेकर ऐसा करता है।

यहाँ तक कि उसने एक ‘एंटी-माइक्रोबियल LED बल्ब’ को भी सर्टिफिकेट दिया। ये 85% कृमियों को मारने का दावा करता है। साथ ही उसने संक्रमण पैदा करने वाले 99% बैक्टेरिया को 2 घंटे में मार गिराने का दावा करने वाले एक पेंट को भी सर्टिफिकेट दिया। IMA प्रोडक्ट्स के साथ-साथ ‘तकनीक’ को भी सर्टिफिकेट देने लगा है। कोरोना से पहले ही ये सब शुरू हो गया था। कोरोना में तो ये कारोबार और फला-फूला है।

इसके लिए कंपनियों से ‘प्रोसेसिंग फी’ लिए जाते हैं, लेकिन इसकी रकम का खुलासा नहीं किया जाता। किस वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर IMA ये सर्टिफिकेट देता है? कौन सी जाँच की जाती है? विज्ञान-विज्ञान रटने वाला IMA अगर सिर्फ पैसे के लिए ये सब नहीं कर रहा है तो वो बताए कि किस जर्नल में प्रकाशित कौन से रिसर्च पेपर के आधार पर वो किसी भी प्रोडक्ट या तकनीक को स्वास्थ्य के लिए अच्छा बता देता है?

इसके लिए कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाती है, ये सार्वजनिक क्यों नहीं है? सब कुछ गुप्त क्यों? दरअसल, पहले IMA प्रत्यक्ष रूप से प्रोडक्ट्स का प्रचार किया करता था। 2010 में उसने फ्रूट जूस, ओट्स, साबुन और वॉटर प्यूरीफायर का प्रचार किया था, जिसके बाद ‘मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI)’ ने उसे नोटिस भी भेजी थी। इसके बाद उसने अप्रत्यक्ष तरीका आजमाया। ‘कोड ऑफ मेडिकल एथिक्स रेगुलेशन’ का उल्लंघन किया गया था।

2015 में उसने फिर वॉटर प्यूरीफायर का प्रचार किया और कहा कि इस तरह से रुपए जुटाना नियमों के विरुद्ध नहीं है। कई डॉक्टरों ने भी उसकी इस करतूतों का विरोध किया। IMA ‘हडसन केनोला आयल’ का प्रचार करता है। ‘रॉयल हेल्थ शील्ड’ नामक पेंट को उसके नाम पर बेचा जाता है। केंट वॉटर प्यूरीफायर से लेकर क्रॉम्पटन के बल्ब तक का उसके नाम पर प्रचार किया जाता रहा है। इसे एक व्यापारिक कंपनी क्यों न माना जाए?

वैज्ञानिक चोला ओढ़ कर IMA अध्यक्ष डॉ. जॉनरोज ऑस्टिन जयलाल जीसस से प्रार्थना करने पर कोरोना ठीक होने की बातें करते हैं। बाबा रामदेव पर एलोपैथी को ख़ारिज करने का आरोप लगाते हुए 1000 करोड़ रुपए का मानहानि के मुक़दमे की धमकी दी गई है। बाबा रामदेव ने 25 सवाल पूछे, जिनमें से एक का भी जवाब IMA नहीं दे पाया। आयुर्वेद और भाजपा से नफरत करने वाले जयलाल मोदी सरकार विरोधी प्रोपेगंडा का हिस्सा हैं।

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