महाराष्ट्र में CBI की ‘एंट्री’ पर बैन’ उठे सवाल, क्यों डरी हुई है उद्धव सरकार ? क्या छिपाना चाहती है ?
न्यूज़ डेस्क। महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने अपनी नाकामियों को छिपाने और खुद को बचाने का उपाय ढूंढ़ लिया है। उद्धव सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए बुधवार को राज्य में मामलों की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को दी गई आम सहमति वापस ले ली। अब CBI महाराष्ट्र में किसी भी केस की सीधे जांच शुरू नहीं कर सकेगी। उसे हर केस की जांच के लिए नए सिरे से राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी।
महाराष्ट्र सरकार को डर सता रहा है कि CBI महाराष्ट्र में TRP मामले की जांच मुंबई पुलिस से ले सकती है। क्योंकि एक मामला उत्तर प्रदेश के लखनऊ में सामने आया है। एक विज्ञापन कंपनी के प्रमोटर की शिकायत पर हजरतगंज पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था। उसकी जांच उत्तर प्रदेश सरकार ने सीबीआई को सौंप दी है।
महाविकास अघाड़ी के नेता ने उद्धव सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि यह फैसला सिर्फ CBI का दुरुपयोग होने की संभावना से बचाने का ‘सेफगार्ड’ है। गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि CBI की राजनीतिक उपयोग को लेकर संदेह की स्थिति बन चुकी है। उन्होंने माना कि TRP केस में उत्तर प्रदेश में FIR दर्ज होने के बाद इस केस को CBI को ट्रांसफर करने की आशंका उत्पन्न हो गई।
उद्धव सरकार इस फैसले पर प्रदेश बीजेपी ने जमकर हमला बोला है। बीजेपी प्रवक्ता और विधायक राम कदम ने महाराष्ट्र सरकार के CBI को जांच से रोकने के फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सरकार का यह तुगलकी फरमान है। आखिर महाराष्ट्र सरकार किन बातों से इतना डरी हुई है और क्या छिपाना चाहती है? जिसकी वजह से उन्होंने इतना बड़ा फैसला लिया है।
राम कदम ने कहा कि पालघर में साधुओं की हत्या का मामले में महाराष्ट्र सरकार सिर्फ दिखावे के लिए जांच कर रही है। सरकार अपनी मनमानी कर सके और बेकसूर लोगों को फंसा कर परेशान कर सके इसके लिए यह फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि सीबीआई किसी बाहरी मुल्क की एजेंसी नहीं है। वह अपने ही देश की एजेंसी है। राम कदम ने उद्धव सरकार के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया।
बीजेपी नेता किरीट सोमैया ने उद्धव सरकार के फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि शिवसेना, कांग्रेस और NCP को इतना डर लगता है कि अगर CBI आ गई तो घोटाले बाहर आ जाएंगे और उनकी गुंडागर्दी रुक जाएगी। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि कोई ऐक्टिविस्ट बोलता है तो उनके गुंडे मारपीट करते हैं और कोई भी पत्रकार उनके खिलाफ बोलता है तो उसे जेल में भेज देते हैं। इन सबको रोकने के लिए प्रदेश में CBI की नो इंट्री कर दी गई है।
ज्ञात हो कि CBI की स्थापना दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट- 1946 के ज़रिए हुई थी। इसके दायरे में दिल्ली और बाक़ी केंद्र शासित प्रदेश आते हैं लेकिन इस क़ानून के सेक्शन 6 के मुताबिक़, दूसरे किसी राज्य में कार्रवाई करने के लिए राज्य की लिखित इजाज़त लेना ज़रूरी होता है। CBI के राज्य में प्रवेश को लेकर महाराष्ट्र से पहले आंध्र प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे गैर-बीजेपी राज्यों ने CBI के लिए सामान्य सहमति वापस ले ली थी।