पूर्व सांसद के ‘रस्म पगड़ी’ कार्यक्रम पर भड़के देवबंद के उलेमा , कहा- इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता,

सहारनपुर (यूपी )। पूर्व सांसद रशीद मसूद की रुड़की में 5 अक्टूबर को कोरोना से मौत होने के बाद परिवार ने उनकी ‘रस्म पगड़ी’ का आयोजन किया। इस रस्म के आयोजन ने कई मुस्लिम कट्टरपंथियों को नाराज कर दिया है। रविवार को वैदिक मंत्रों के उच्चारण के बीच सहारनपुर के बिलासपुर गांव में यह रस्म की गई। सूत्रों के अनुसार, अनुष्ठान के शुरू होती ही कई मौलवी कार्यक्रम स्थल से न केवल उठकर चले गए, बल्कि उन्होंने इस रस्म पर नारागजी भी जताई।

मौलाना असद कासमी ने मंगलवार को कहा, “वहां हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, रस्म पगड़ी की गई थी। कुछ पंडित वैदिक मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। पगड़ी बांधना और परिवार में एक वरिष्ठ को चुनना अच्छी परंपरा है, लेकिन इसे इस्लामी परंपरा के अनुसार किया जाना चाहिए था।”

इस रस्म का वीडियो सोशल मीडिया पर आते ही इस पर तीखी टिप्पणियां भी की गईं। रस्म पगड़ी का आयोजन परिवार के सबसे बड़े सदस्य की मृत्यु के कुछ दिन बाद किया जाता है और परिवार के अगले बड़े सदस्य को पगड़ी पहनाकर उसे परिवार के मुखिया की तरह सम्मान दिया जाता है।

वैदिक मंत्रों और हिंदू रीति-रिवाजों के बीच आयोजित हुए समारोह में पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद के बेटे शाजान मसूद के सिर में पगड़ी बांधकर परिवार के प्रमुख का दर्जा दिया गया। रिश्तेदारों और समर्थकों के जमावड़े के बीच बुर्जुगों ने शाजान मसूद को पगड़ी बांधी और इस मौके पर कई हिंदू अनुष्ठान भी किए गए।

हालांकि परिवार मौलवियों की प्रतिक्रिया से प्रभावित नहीं है। पगड़ी बंधवाने वाले शाजान ने कहा, “हमारे यहां यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। मेरे दादा और चाचा के लिए भी उनके हिंदू दोस्तों ने ऐसी रस्म का आयोजन किया था, अब यह मेरे पिता के लिए हुआ है। वैसे भी उनका पूरा जीवन हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए समर्पित रहा और हम उनकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। जो लोग समारोह के जरिए मेरे पिता को श्रद्धांजलि देना चाहते थे, उन्हें इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस्लाम सभी धर्मो का सम्मान करता है।”

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