कहीं पंजाब, राजस्थान की तरह छत्तीसगढ़ में भी शुरू न हो जाए घमासान, टीएस सिंह देव के बयान में दिख रहा असंतोष
रायपुर। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस महज तीन राज्यों में सिमटकर रह गई है और इन तीनों राज्यों से अंर्तकलह की खबरें सामने आ रही हैं। राजस्थान का गहलोत-पायलट विवाद और पंजाब का अमरिंदर-सिद्धू विवाद किसी से छिपा नहीं था कि छत्तीसगढ़ का भूपेश बघेल-टीएस सिंह देव विवाद पैर पसारने लगा है।
छत्तीसगढ़ में साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की। लेकिन उस वक्त तय नहीं था कि मुख्यमंत्री पद किसे दिया जाए। हालांकि चर्चा में तब के प्रदेश अध्यक्ष रहे भूपेश बघेल और रमन सिंह सरकार के समय में विपक्ष के नेता रहे टीएस देव सिंह का नाम चल रहा था। मगर बाजी भूपेश बघेल मार ले गए।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पार्टी आलाकमान ने ढाई-ढाई साल वाला फॉर्मूला लगाया था। लेकिन राजनीति में तो कुछ भी लिखित नहीं होता है क्योंकि ऐसा होता तो भूपेश बघेल अभी मुख्यमंत्री नहीं होते। कहा जाता है कि विधानसभा चुनाव के समय टीएस सिंह देव पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी हुआ करते थे लेकिन उन्हें स्वास्थ्य मंत्री का दर्जा ही मिल सका और अब हालात ऐसे हैं कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से आलाकमान खुश है।
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव प्रदेश सरकार की नीतियों से खुश नजर नहीं आ रहे हैं। उन्होंने नई स्वास्थ्य योजना को लेकर कहा कि यदि ग्रामीण क्षेत्रों में अनुदान प्राप्त निजी अस्पताल मरीजों से चिकित्सा शुल्क लेते हैं तब यह निशुल्क स्वास्थ्य सेवा की अवधारणा के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि वह इस तरह की योजना के पक्ष में नहीं हैं तथा इस संबंध में उनसे कोई चर्चा नहीं की गई है।
जनसंपर्क विभाग ने बताया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूती प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अब निजी क्षेत्र का भी सहयोग लेने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवाएं उपलब्ध हो सके, इसके लिए सभी शासकीय अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के साथ ही स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा के निर्माण में निजी क्षेत्र का सहयोग भी लिया जाएगा। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल निर्माण के लिए निजी क्षेत्रों को राज्य सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाएगा। यह अनुदान राज्य सरकार द्वारा सेवा क्षेत्र के उद्योगों को दिए जा रहे अनुदान के तहत होगा।
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस एक बार और तब हार गई जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा के साथ चले गए और मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई। राहुल गांधी अपने सबसे अच्छे मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी नहीं संभाल पाए। अगर ऐसी ही स्थिति रही तो आने वाले लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस बिखर सकती है। क्योंकि पंजाब, राजस्थान और अब छत्तीसगढ़ में भी अंर्तकलह शुरू हो चुका है।