विवाह के लिए धर्म परिवर्तन जरूरी नहीं… इलाहाबाद HC के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को एक याचिका दायर कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करने का अनुरोध किया। इस आदेश में केवल शादी के लिए धर्मांतरण को अमान्य बताया गया था। याचिका में कहा गया कि अगर अदालत एक व्यक्ति को खुले तौर पर अपना धर्म चुनने की आजादी नहीं देती है, तो यह संविधान के तहत प्रदत्त उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

याचिका में उस जोड़े को तुरंत पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया जिसकी याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी। वकील अल्दनीश रेन ने विवाहित जोड़े को पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने के संबंध में उच्च न्यायालय के इनकार के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है। मामले में एक मुस्लिम महिला ने हिंदू धर्म अपनाकर हिंदू युवक के साथ शादी की थी। उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों जोड़े की याचिका को ठुकरा दिया था। इसमें पुलिस और महिला के पिता को उनकी शादी में बाधा नहीं डालने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। अदालत ने कहा कि महज शादी के लिए धर्मांतरण मान्य नहीं है।

याचिका में कहा गया कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में विशेष विवाह कानून 1954 के प्रावधानों को चुनौती देने वाले लंबित सभी मामलों को इस न्यायालय में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। इस पर सुनवाई होनी चाहिए ताकि समूचे देश में कानून में एकरूपता लाई जाए। कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए इसमें उचित संशोधन की सिफारिश को लेकर विकल्प के तौर पर एक कमेटी का गठन होना चाहिए।

याचिका में कहा गया कि उच्च न्यायालय के आदेश ने गरीब जोड़े को परिवार, पुलिस और नफरत फैलाने वाले समूहों की दया पर छोड़ दिया है। साथ ही एक गलत परंपरा भी कायम की है कि अंतरधार्मिक विवाह किसी भी जीवनसाथी के धर्म के बदलने के आधार पर नहीं हो सकता। याचिका में उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए दावा किया गया है कि उत्तरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश और कर्नाटक पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वे शादी के लिए धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने के लिए कानून लागू करेंगे ।

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