बच्चों को लेकर सरकार की गाइडलाइन: रेमडेसिविर पर रोक, कहा- घर पर करें 6 मिनट का वॉक टेस्ट

नई दिल्ली। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच एक्सपर्ट का मानना है कि इस लहर का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर होगा। जिसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से बच्चों को संभावित कोरोना की तीसरी लहर से बचाने के लिए स्वास्थ्य गाइडलाइन जारी की गई है। यह गाइडलाइन 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी की गई है, जिसमे विस्तार से बताया गया है कि बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।

स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइ में कहा गया है कि बच्चों को एंटिवायरल दवा रेमडिसिवीर के इस्तेमाल का सुझाव नहीं दिया जा रहा है, इसके अलावा बच्चों को एस्टेराइड तभी देनी चाहिए जब उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो। गाइडलाइन में कहा गया है कि आपातकाल में इस्तेमाल करने के लिए रेमडिसिवीर का सुझाव नहीं दिया गया है, 18 साल से कम उम्र के बच्चों में इस दवा के इस्तेमाल के लिए पर्याप्त आंकड़े मौजूद नहीं कि यह दवा बच्चों पर कितनी कारगर या सुरक्षित है। इसके साथ ही सरकार की ओर से बच्चों का 6 मिनट टेस्ट करने का सुझाव दिया गया है। जो बच्चे 12 साल से ऊपर के हैं उन्हें कार्डियो पल्मनरी एक्सरसाइज करने को कहा गया है।

गाइडलाइन में कहा गया है कि बच्चों की उंगली पर पल्स ऑक्सीमीटर लगाकर उन्हें कमरे में ही 6 मिनट तक टहलने के लिए कहा जाए। अगर मीटर पर सैचुरेशन 94 फीसदी से कम या फिर 3-5 फीसदी से ज्यादा का अंतर दिखता है या बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होती है तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए। जिन बच्चों को अनियंत्रित अस्थमा है उन्हें यह टेस्ट नहीं करना चाहिए। अगर बच्चे को गंभीर कोविड बुखार है तो उसे तुरंत ऑक्सीजन थेरेपी देनी चाहिए, बच्चे में फ्लूड और इलेक्ट्रोलाइट को संतुलित करना चाहिए और कोर्टीकॉस्टेराइड थेरेपी को शुरू कर देना चाहिए।

दरअसल एस्टेराइड उनके लिए नुकसानदायक है जिनमे कोरोना के लक्षण नहीं दिखते हैं या फिर जिन्हें शुरुआती कोरोना है। बच्चों को अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में बहुत ज्यादा तबीयत खराब होने पर ही नियंत्रित मात्रा में एस्टेराइड दिया जाना चाहिए। एक्सपर्ट का मानना है कि एस्टेराइड का गलत इस्तेमाल ही देश में ब्लैक फंगस के फैलने की अहम वजह है। जो बच्चे 5 साल या उससे कम उम्र के हैं वो मास्क नहीं पहन सकते हैं और जो बच्चे 6 से 11 साल के हैं उन्हें माता-पिता की देखरेख में मास्क पहनना चाहिए।

इसके अलावा डॉक्टरों को भी इस गाइडलाइन में कुछ सलाह दी गई है। डॉक्टरों को सलाह दी गई है कि बच्चों का इलाज कर रहे डॉक्टरों को हाई रिजोल्यूशन सीटी स्कैन कराने से पहले सोचना चाहिए और अपरिहार्य स्थिति में ही ऐसा करना चाहि। ब्लैक फंगस से मृत्यु दर को रोकने के लिए डॉक्टरों को कहा गया है कि वो इसे आपात मामले की तरह से देखे और तुरंत इलाज शुरू करें, वो कल्चर की रिपोर्ट का इंतजार नहीं करें।

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