कोविड-19 : कोरोना से जंग में गरीब देशों का सहारा बनेगा भारत, वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए भारत ने दिया है भरोसा

नई दिल्ली। भारत कोरोना की वैक्सीन विकासशील और गरीब देशों तक पहुंचाने की मुहिम संयुक्त राष्ट्र के जरिए और अन्य वैश्विक मंचों पर तेज कर सकता है। कई गरीब व विकासशील देशों ने इस संबंध में चिंता जताई है कि वैक्सीन पर केवल अमीर देशों व अमीर लोगों का कब्जा न हो और इसका समान वितरण सुनिश्चित हो। पोलियो और टीबी के टीके आजतक सभी देशो में पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाए हैं। अफ्रीकी देशों ने इस संबंध में विशेष चिंता जाहिर की है।

भारत में वैक्सीन निर्माण और वितरण की व्यवस्था अन्य देशों की तुलना में पुख्ता है। साथ ही भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ ऐसे तमाम देशो की बात आगे बढ़ाने को तैयार है जो जरूरतमंद हैं। भारत ने पड़ोसी देशों के साथ इस संबंध में सहमति जाहिर की है। बांग्लादेश दौरे के समय ही हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा था कि वैक्सीन बनी, तो हमारे दोस्त, सहयोगी, पड़ोसी सबको मिलेगी और हमारे लिए बांग्लादेश हमेशा से प्राथमिकता में है। भारत नेपाल ,भूटान,बांग्लादेश को भी आश्वस्त किया है। सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों लगभग सभी वैश्विक मंचो पर वैक्सीन का निर्माण और इसकी पहुंच बहस का मुद्दा बना है।

किसी भी वैक्सीन का वितरण समान रूप से हो इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अप्रैल में सीओवीएएक्स केंद्र बनाया था। यह केंद्र सरकारों, वैज्ञानिकों, सामाजिक संस्थाओं और निजी क्षेत्र को एक साथ लाने का प्रयास कर रहा है। हालांकि फाइजर जैसी टीका बनाने वाली कंपनियां अभी इसका हिस्सा नहीं है। लेकिन सीओवीएएक्स को संभावित आपूर्ति के बारे में कंपनी ने अपनी इच्छा जाहिर की है। यूनिसेफ जैसी संस्थाएं भी टीके की पहुंच गरीब देशों तक सुनिश्चित करने का मसला जोर शोर से उठा रही हैं।

जानकारों का कहना है कि इस बात की संभावना कम है कि कोरोना वायरस के पहले टीके गरीब देशों तक पहुंच पाएंगे। टीके की खरीद के लिए फाइजर के साथ होने वाले एडवांस कॉन्ट्रैक्टस के आधार पर एक अनुमान लगाया गया है कि 1.1 अरब डोज पूरी तरह से अमीर देशों में जानी हैं। जापान और ब्रिटेन जैसे जिन देशों ने टीके के लिए पहले से ऑर्डर दे रखा है, वे सीओवीएएक्स के सदस्य हैं। ऐसे में हो सकता है कि वे जो टीके वे खरीदें, उनमें से कुछ विकासशील देशों को मिलें। 60 करोड़ डोज का ऑर्डर देने वाला अमेरिका सीओवीएएक्स में शामिल नहीं है। लेकिन बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद नई रणनीति की उम्मीद की जा रही है।

उम्मीद नए टीकों की खोज पर टिकी है। भारत दुनिया की उम्मीद का बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। कोविड कि दौरान भारत ने करीब डेढ़ सौ देशो को मदद पहुंचाई है। टीके की खोज पर भी भारत का अभियान जिम्मेदार तरीके से आगे बढ़ रहा है।

इन टीकों को समान पहुंच तक लाने में करनी पड़ी मशक्कत

पोलियो : पोलियो के टीके 1950 और 60 के दशक में बन गए थे। एक दशक के भीतर अधिकांश विकसित देशों में वायरस का उन्मूलन हो गया। लेकिन अफ्रीका महाद्वीप को पोलियो मुक्त घोषित करने के लिए इस वर्ष के अगस्त तक का समय लग गया। अफगानिस्तान और पाकिस्तान अभी भी बीमारी से पीड़ित हैं।

तपेदिक : इस बीमारी ने पिछले साल 1.4 मिलियन लोगों को मार दिया। ये संख्या कोविड -19 से मरने वालों की तुलना में अधिक है। तपेदिक की वैक्सीन लगभग एक सदी पहले विकसित की गई थी, लेकिन उस समय से लाखों मौतें हुई हैं। वैक्सीन को सार्वभौमिक बनाने से होने वाली मौतों से बचने के लिए साझा इच्छाशक्ति नहीं दिखाई गई।

खसरा : वर्ष 2018 में खसरा ने दुनिया मे लगभग 140,000 लोगों की जान ले ली, जिनमें ज्यादातर पांच साल से कम उम्र के बच्चे थे। एक सुरक्षित खसरा टीका है, जो हर साल लाखों लोगों की मृत्यु को रोकता है। लेकिन दुनिया में 7 में से 1 बच्चे अपने जन्म के एक साल के भीतर इसे प्राप्त नहीं करते हैं, जिससे वे असुरक्षित हो जाते हैं।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.