चीन की विस्तारवादी नीति से निपटने मोदी सरकार की नई रणनीति, दुर्गम सीमावर्ती क्षेत्र में पहुंच बढ़ाने के लिए 3 मार्च से शुरू होगा स्कीइंग अभियान
न्यूज़ डेस्क। चीन की विस्तारवादी और पाकिस्तान की हड़प नीति से देश की सीमाओं की रक्षा के लिए मोदी सरकार अनेक कदम उठा रही है। इसमें सैनिकों को आधुनिक रक्षा उपकरणोंं से सुसज्जित करना और सीमा पर आधारभूत ढांचे के विकास पर जोर देना शामिल है। अब इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए मोदी सरकार ने 3 मार्च से स्कीइंग अभियान शुरू करने का फैसला किया है, ताकि दुर्गम सीमावर्ती इलाकों की पूरी जानकारी हासिल कर कारगर सुरक्षा रणनीति तैयार की जा सके।
चीन की रणनीति दुर्गम सीमावर्ती इलाकों में थोड़े-थोड़े भू-भागों में आगे बढ़कर उस पर अपना दावा करने की है, ताकि एक भी गोली चलाए बिना वह एक नए क्षेत्र को हड़प सके और जानमाल का नुकसान भी न हो। चीन की इस रणनीति को नाकाम करने के लिए सरकार ने सेना को नए सिरे से अभियान चलाने की अनुमति दी है। इसी के तहत सेना पर्वतारोहण अभियानों और उत्तरी सीमाओं के साथ भारत के वैध क्षेत्रीय दावों को सार्वजनिक करने और समेकित करने के लिए अनुसंधान अध्ययनों पर जोर दे रही है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, शुरुआत में सेना 3 मार्च से लद्दाख में महत्वपूर्ण काराकोरम दर्रे से उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रा तक एक बड़ा स्कीइंग अभियान शुरू कर रही है। इसके तहत सेना का अभियान दल 80 से 90 दिनों में करीब 1,500 किमी की दूरी तय करेगा। विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मी पहाड़ों की चोटियों, ग्लेशियर और 14,000 फीट से लेकर 19,000 फीट तक की पारंग ला, लमखागा और मलारी जैसी कई पहाड़ियों को तय करेंगे।
इस तरह के अभियानों को भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन और अन्य पर्वतारोहण संस्थानों के समन्वय के साथ एलएसी व आईबी की चोटियों पर सेना, नागरिकों और विदेशी व्यक्तियों की भागीदारी से ले जाने की योजना बनाई जाएगी। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, “चीन की स्पष्ट रूप से विस्तारवादी नीति का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने की आवश्यकता है। हालाँकि, सेना ने उत्तरी सीमाओं पर अतिरिक्त बलों और गोलीबारी के साथ मुकाबला किया था। फिर भी वहां पर्वतारोहण और अन्य अभियानों के माध्यम से एकीकृत क्षेत्रों में हमारी उपस्थिति को दिखाना और चिह्नित करना ज़रूरी है।”
इसी तरह वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) व अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) दोनों के साथ भारत के क्षेत्रीय दावों, विशेषज्ञों द्वारा अनुसंधान अध्ययनों और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनके प्रकाशन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। अधिकारी ने कहा, “इसमें कानूनी दस्तावेज़, क्षेत्रीय संबंध और साक्ष्य-निर्माण भी शामिल होगा।”