कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने खेला तेल का खेल, मौजूदा केंद्र सरकार और उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है खामियाजा

न्यूज़ डेस्क। देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। इससे जहां तेल उपभोक्ता पेरशान है, वहीं इस पर सियासत भी खूब हो रही है। लेकिन आम लोगों को पता नहीं है कि तेल की कीमत क्यों बढ़ी है। कीमत बढ़ने की वजह जानकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बढ़ोतरी के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती UPA सरकार ही जिम्मेदार है।

सब्सिडी के बदले तेल कंपनियों को आयल बांड्स

दरअसल पूर्ववर्ती यूपीए शासन में तेल की कीमतों को लेकर खूब राजनीति होती थी, उसका खामियाजा मौजूदा केंद्र सरकार और आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। पूर्व में कच्चे तेल के महंगा होने पर उसका पूरा बोझ आम जनता पर नहीं डाला जाता था, बल्कि सब्सिडी दी जाती थी। इस सब्सिडी की राशि के बदले तेल कंपनियों को आयल बांड्स जारी किए जाते थे। इन बांड्स की परिपक्वता अवधि 10 से 20 वर्ष होती थी। ये बांड्स परिपक्व हो रहे हैं और इनका भुगतान अब शुरू होगा।

1.31 लाख करोड़ रुपये का आयल बांड्स जारी हुआ था

पूर्व की सरकारों की तरफ से जारी 1.31 लाख करोड़ रुपये के आयल बांड्स का भुगतान मौजूद और आगामी केंद्र सरकार को इस वर्ष अक्टूबर से लेकर मार्च 2026 के बीच करना होगा। वित्त मंत्रालय के मुताबिक इस वर्ष अक्टूबर और नवंबर में पांच-पांच हजार करोड़ रुपये के बांड्स के भुगतान का बोझ केंद्र सरकार को उठाना है। एक दशक पहले केंद्र सरकार की तरफ से जारी इन मूल्यों के दो बांड्स के लिए अब मूल व ब्याज के तौर पर 20 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना है।

केंद्र सरकार पर आयल बांड्स के भुगतान का बोझ

वर्ष बांड्स का भुगतान
2021 20 हजार करोड़ रुपये
2023 22 हजार करोड़ रुपये
2024 40 हजार करोड़ रुपये
2025 20 हजार करोड़ रुपये
2026 37 हजार करोड़ रुपेय

बांड्स के भुगतान से तेल की कीमतों में बढ़तोरी

वर्ष 1996-97 के बाद से केंद्र सरकार ने तेल कंपनियों के घाटे की भरपाई के लिए आयल बॉड्स जारी करने का फॉर्मूला निकाला था। वर्ष 2004 में आई यूपीए सरकार ने एक नया फॉर्मूला निकाला था, जिसके तहत वह कुछ बोझ आम जनता पर डालती थी और कुछ बोझ बतौर आयल बांड्स तेल कंपनियों को जारी कर दिए जाते थे। आयल बांड्स जारी कर तत्कालीन यूपीए सरकार ने फौरी तौर पर तो ग्राहकों के लिए दाम स्थिर रखकर राहत दे दी थी और तेल की सियासत पर विराम लगा दिया था, लेकिन अब उसका भुगतान आम ग्राहकों की जेब से होना है। इसकी वजह से तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है और उपभोक्ताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

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