प्रधानमंत्री मोदी की इच्छाशक्ति से देश में बढ़ा इथेनॉल का उत्पादन
न्यूज़ डेस्क। पीएम नरेंद्र मोदी के संकल्प और इच्छाशक्ति की बदौलत, देश में न केवल इथेनॉल का उत्पादन ब़ढ़ा है बल्कि देश में इसका प्रयोग भी बढ़ा है। इथेनॉल एक प्रकार का स्टैंडएलोन ऐसा फ्यूल है जिसके इस्तेमाल से गाड़ियां तो चलती ही हैं प्रदूषण भी कम होता है। वैसे तो पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने की योजना कई बार बनी लेकिन पूर्ववर्ती सरकार खासकर कांग्रेस सरकार की उपेक्षा के कारण जमीन पर आते-आते ये योजनाएं दम तोड़ती रहीं। इसी के परिणामस्वरूप इथेनॉल उत्पादन भारत की प्राथमिकता सूची में कभी आई ही नहीं। लेकिन देश की सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इथेनॉल के उत्पादन की तरफ ध्यान देना शुरू किया। इसी का नतीजा है कि आज न केवल देमें इथेनॉल उत्पादन में तेजी आई है, बल्कि इसका उपयोग भी सरकार ने बढ़ाया है। पेट्रोलियम पदार्थों के भारी-भरकम आयात, बढ़ते प्रदूषण, चीनी मिलों के घाटे, किसानों को गन्ना मूल्य के भुगतान में देरी जैसी समस्याओं को देखते हुए ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञ काफी समय से सुझाव देते रहे हैं कि पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण को बढ़ाया जाए। दुर्भाग्यवश पिछली कांग्रेसी सरकारों के दौर में सत्ता पक्ष से जुड़े पेट्रोलियम आयातकों की मजबूत लॉबी ने इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के सरकारी योजनाओं को पूरी तरह लागू नहीं होने दिया। कांग्रेस की सरकार इस लॉबी के सामने झुक गई।
अन्य फसलों से इथेनॉल बनाने की दी मंजूरी
मालूम हो कि इथेनॉल पर्यावरण मित्र ईंधन है। पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने से पेट्रोल के उपयोग में होने वाले प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है। इसके इस्तेमाल से गाड़ियां 35 प्रतिशत कम कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं। सल्फर डाइऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन भी इथेनॉल कम करता है। इथेनॉल में उपलब्ध 35 प्रतिशत ऑक्सीजन के कारण यह ईंधन नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन को भी कम करता है। वैसे तो इथेनॉल का उत्पादन मुख्य रूप से गन्ने से होता है लेकिन जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रही है वैसे-वैसे अनाजों, फसल अवशेषों से भी इथेनॉल बनने लगा है। इतना ही नहीं मोदी सरकार ने किसानों को उनकी उपज की लाभकारी कीमत दिलाने के लिए गन्ने के साथ-साथ गेहूं, चावल, मक्का और दूसरे खाद्यान्नों से भी इथेनॉल उत्पादन को मंजूरी दे दी है। इससे न सिर्फ अतिरिक्त अनाज की खपत होनी शुरू हुई है बल्कि पेट्रोलियम के आयात पर निर्भरता घटाने में भी मदद मिली है। स्पष्ट है पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने से पेट्रोल आयात पर निर्भरता कम होने, किसानों की आमदनी बढ़ने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी।
पीएम मोदी ने सत्ता में आते ही दिय़ा ध्यान
मोदी सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है कि 2014 में जहां 38 करोड़ लीटर इथेनॉल की खरीद हो रही थी वहीं अब हर साल 320 करोड़ लीटर इथेनॉल खरीदा जा रहा है। पिछले साल पेट्रोलियम कंपनियों में 21,000 करोड़ रूपये का इथेनॉल खरीदा और इसका अधिकांश हिस्सा देश के किसानों की जेब तक पहुंचा। इथेनॉल गन्ना किसानों को समय से भुगतान और चीनी मिलों की अतिरिक्त आमदनी का कारगर हथियार बन चुका है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिलने के लक्ष्य को पांच साल पहले अर्थात 2030 के बजाए 2025 कर दिया है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और अपनी मांग के 85 प्रतिशत हिस्सा के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर है। मोदी सरकार इथेनॉल उत्पादन के जरिए ऊर्जा आत्मनिर्भरता हासिल करने के साथ-साथ किसानों की आमदनी बढ़ाने, पर्यावरण प्रदूषण कम करने के बहुआयामी उपाय कर रही है।
मोदी सरकार के फैसले से आम आदमी को राहत
पेट्रोल-डीजल की आसमना छूती कीमतों से आम आदमी को अब राहत मिल सकती है। केंद्र सरकार ने इथेनॉल को स्टैंडएलोन फ्यूएल के तौर पर इस्तेमाल करने की मंजूरी दे दी है। अब ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को सीधे E-100 बेचने की अनुमति मिल गई है। जानकारी के मुताबिक, पेट्रोलियम मंत्रालय ने इससे संबंधित नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। जानकारों का मानना है कि सरकार के इस फैसले के बाद इथेनॉल को आम आदमी अब पेट्रोल-डीजल की तरह इस्तेमाल कर सकेंगे। सरकार ने पेट्रोल और डीजल की तरह E-100 को अनुमति दी है।
इथेनॉल के इस्तेमाल से लाभ
गन्ने से तैयार होने और इको-फ्रेंडली होने की वजह से इथेनॉल न सिर्फ कम लागत वाला ईंधन है बल्कि पेट्रोल-डीजल से होने वाले नुकसान से भी बचाता है। इतना ही नहीं जिस प्रकार देश और दुनिया में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इथेनॉल फ्यूल हमारे देश की जरूरत है। इथेनॉल के इस्तेमाल से देश की सड़क पर चलने वाली गाड़ियां 35 फीसदी कम कॉर्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करती है। इसके अलावा सल्फर डॉइऑक्साइड और हाइड्रोकॉर्बन का उत्सर्जन भी इथेनॉल कम करता है। साथ ही साथ इथेनॉल में मौजूद 35 फीसदी ऑक्सीन के चलते ये फ्यूल नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन को भी कम करता है।
देश को इथेनॉल फ्यूल की जरूरत
इथेनॉल इको-फ्रैंडली फ्यूल है और पर्यावरण को जीवाश्म ईंधन से होने वाले खतरों से सुरक्षित रखता है। इस फ्यूल को गन्ने से तैयार किया जाता है। कम लागत पर अधिक ऑक्टेन नंबर देता है और एमटीबीई जैसे खतरनाक फ्यूल के लिए ऑप्शन के रूप में काम करता है। यह इंजन की गर्मी को भी बाहर निकलता है। एल्कोहल बेस्ड फ्यूल गैसोलीन के साथ मिलकर ई 85 तक तैयार हो गया। कहने का मतलब इथेनॉल फ्यूल हमारे पर्यावरण और गाड़ियों के लिए सुरक्षित है।