विश्व विकलांग दिवस विशेष 2020 : ‘दिव्यांग’, इनके हौसले के आगे हारी विकलांगता, जज्बे को करती है दुनिया सलाम
नई दिल्ली। विकलांगता कोई अभिषाप नहीं, इस बात को दुनिया को समझाने के लिए ही हर साल 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस (World Disability Day) मनाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकलांग शब्द की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का प्रयोग शुरू किया। उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति भी आम लोगों की तरह जिंदगी जी सकता है। विकलांग व्यक्तियों के आत्म सम्मान और जीवन में नई दिशा देने के उद्देश्य से विश्व विकलांग दिवस हर साल 3 दिसंबर को मनाया जाता है।
इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य शारीरिक रुप से अक्षम लोगों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ना। साथ ही उनके साथ भेदभाव की भावना को जड़ से खत्म करना है। विश्व विकलांग दिवस मनाने की परंपरा 1991 से चली आ रही है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व के बुद्धिजीवी वर्ग तथा प्रतिनिधियों ने यह तय किया कि प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाया जाएगा।
विश्व विकलांग दिवस का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1983 से 1992 को विकलांगों के लिए संयुक्त राष्ट्र के दशक की घोषणा की थी ताकि वो सरकार और संगठनों को विश्व कार्यक्रम में अनुशंसित गतिविधियों को लागू करने के लिए एक लक्ष्य प्रदान कर सकें। इसके बाद 1992 से 3 दिसंबर, विश्व दिव्यांग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
ऐसे लोग जिन्होंने विकलांगता को दी मात
आज हम उन लोगों की बात करेंगे, जिन्होंने अपनी विकलांगता को अपनी ताकत बना लिया। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से इस बात को साबित कर दिया कि मन में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो शरीर की दुर्बलता कभी रोड़ा नहीं बनती। वो सारे काम जो एक आम आदमी कर सकता है, दिव्यांगजन भी उसे पूरी लगन से कर सकते हैं।
वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग
भौतिकी के क्षेत्र के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग शारीरिक रूप से अक्षम होने की वजह से मशीन से ही सुनते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अद्भुत कार्य किया। जिसकी वजह से आज भी लोग जानते पहचानते हैं। ये वही स्टीफन हॉकिंग थे जिन्हें 21 साल की उम्र में कह दिया गया था कि वो दो-तीन साल ही जी पाएंगे। साल 1963 में अचानक उन्हें पता चला कि वो मोटर न्यूरॉन बीमारी से पीड़ित हैं। यह बीमारी दिमाग और तंत्रिका पर असर डालती है। इससे शरीर में कमजोरी पैदा होती है जो वक्त के साथ बढ़ती जाती है।
वालीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा
उत्तर प्रदेश की रहने वालीं अरुणिमा सिन्हा की कहानी बेहद प्रेरणा दायक है। साल 2011 में बदमाशों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए जाने के कारण एक पैर गंवा चुकने के बावजूद अरुणिमा ने हौंसला नहीं हारा और 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली दिव्यांग भारतीय महिला होने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। ट्रेन दुर्घटना से पूर्व उन्होने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में राज्य की वॉलीबाल और फुटबॉल टीमों में प्रतिनिधित्व किया था। वह कभी नहीं चाहती थीं कि लोग उन्हें दया की भावना से देखें।
कलाकार सुधा चंद्रन
सुधा चंद्रन टीवी जगत का एक मशहूर नाम हैं। उनकी अदायकी को लोग काफी पसंद करते हैं, लेकिन कम ही लोगों को पता है कि छोटी उम्र में ही उनका एक पैर काटना पड़ा था। दरअसल, तीन साल की छोटी उम्र से ही उन्होंने अभिनय करना शुरू कर दिया था। डांस उनका पैशन था पर एक बस दुर्घटना के दौरान उनके घुटने में चोट लगी। जिससे संक्रमण फैलने से रोकने के लिए उसके पैर को काटना पड़ा। पैर कटने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। सुधा चंद्रन ने अपनी पहली डांस परफॉरमेंस सिर्फ एक पैर पर दी और सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
संगीतकार रवींद्र जैन
रामानंद सागर का धारावाहिक रामायण और श्री कृष्णा आज भी लोगों के जेहन में ताजा है, इसके पीछे कलाकारों की मेहनत के साथ-साथ मंत्रमुग्ध कर देने वाले संगीत का बहुत बड़ा योगदान है। घर-घर में रामधुन पहुंचाने वाले रवींद्र जैन नेत्रहीन होने के बाद भी मन की आंखों से सबकुछ महसूस करते थे। रवींद्र जैन ने कई बॉलीवुड फिल्मों जैसे गीत गाता चल, अंखियो के झरोखे से, नदिया के पार, चोर मचाये शोर, सौदागर जैसी कई हिट फिल्मों में अपना संगीत दिया।