सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला विवादित जमींन मंदिर को दी जाएगी, मस्जिद के लिए अन्यत्र 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि

नई दिल्ली। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में आज सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच अपना फैसला सुना रही है। अयोध्या मामले में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले अयोध्या समेत देश भर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। साथ ही यूपी, दिल्ली, बिहार, राजस्थान समेत देश के कई राज्यों में स्कूल-कॉलेजों को बंद कर दिया गया है। फैसले के बाद शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है और सोशल मीडिया पर भी निगरानी रखी जा रही है। PM नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाए जाने के मद्देनजर देश के लोगों से शांति बना रखने की अपील की। उन्होंने कहा कि हम सबको मिलकर सौहार्द बनाए रखना है।

आज अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि तीन-चार महीने के भीतर केंद्र सरकार ट्रस्ट की स्थापना के लिए योजना तैयार करे। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन को मंदिर के लिए सौंपने का फैसला दिया है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा है कि अयोध्या में 5 एकड़ जमीन का एक उपयुक्त वैकल्पिक भूखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अपने बहुप्रतीक्षित ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे बनी संरचना इस्लामिक नहीं थी लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यह साबित नहीं किया कि मस्जिद के निर्माण के लिये मंदिर गिराया गया था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर अपने फैसले में यह टिप्पणी की।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़,न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। संविधान पीठ ने कहा कि पुरातात्विक साक्ष्यों को सिर्फ एक राय बताना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रति बहुत ही अन्याय होगा।

न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवादित भूमि को भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं और मुस्लिम भी इस स्थान के बारे में यही कहते हैं। हिन्दुओं की यह आस्था अविवादित है कि भगवान राम का जन्म स्थल ध्वस्त संरचना है। पीठ ने कहा कि सीता रसोई, राम चबूतरा और भंडार गृह की उपस्थिति इस स्थान के धार्मिक होने के तथ्यों की गवाही देती है। शीर्ष अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि मालिकाना हक का निर्णय सिर्फ आस्था और विश्वास के आधार पर नहीं किया जा सकता और यह विवाद के बारे में फैसला लेने के संकेतक हैं।

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