गौठानों में गोबर से बन रहे गमले, स्व-सहायता समूह की महिलाएं इन्हें नर्सरी में विक्रय करने कर रही तैयार
रायपुर। मॉडल गौठानों में नवाचारों के माध्यम से महिला स्वसहायता समूहों के लिए अधिकतम अवसर देने के क्रम में दुर्ग जिले के पाहंदा, ढौर, अमलीडीह, बोरवाय, ढाबा जैसे मॉडल गौठानों में गोबर के माध्यम से गमलें बनाये जा रहे हैं। इसके लिए जिला पंचायत के द्वारा महिला स्व-सहायता समूहों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराया गया है और बाजार भी चिन्हांकित किया है। इन गमलों को नर्सरी में विक्रय किया जाएगा। नर्सरी के लिए यह गमले काफी उपयोगी होंगे क्योंकि ये गोबर से बनाये गए हैं जो गोबर खाद की तरह उपयोग में आने से पौधे के पोषण के लिए मिनरल्स की जरूरत भी पौधे को अपने गमले से मिल सकेगी। हर गौठान के परिवेश की जरूरतों के मुताबिक अलग तरह का नवाचार अपनाया जा रहा है ताकि महिला स्वसहायता समूहों को विस्तारित बाजार मिल सके, वे अपने आसपास के साधनों से ही ऐसी चीजें बनाएं जिसकी व्यावसायिक संभावनाएं अधिक हों, इसके लिए प्रशिक्षण और तकनीकी मार्गदर्शन उपलब्ध कराया जा रहा है और बाजार लिंकेज की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है।
केवल गोबर नहीं, अलग-अलग मिट्टी का मिश्रण ताकि पौधे के लिए जरूरत के हिसाब से सारे पोषक तत्व मिल सके- गोबर के इन गमलों में पीली मिट्टी, काली मिट्टी तथा भूसा भी मिलाया गया है। काली मिट्टी में अलग तरह के पोषक तत्व होते हैं और पीली मिट्टी में अलग तरह के पोषक तत्व साथ ही गोबर में जैविक खाद के गुण तो होते ही हैं। इन सबके मुकम्मल मिश्रण से पौधे के लिए खाद का अच्छा स्रोत तैयार होता है। ऐसा गमला नर्सरी के लिए काफी उपयोगी होता है।
पाहंदा की महिलाओं ने दिखाया टास्क फोर्स को- जब दिल्ली से जलशक्ति मंत्रालय के लिए गठित टास्क फोर्स ने पाहंदा मॉडल गौठान में इन गमलों को देखा तो वे काफी खुश हुए। उन्होंने कहा कि इस तरह के नवाचार से ही आर्थिक सशक्तिकरण होता है। कई बार आउट आफ बाक्स आइडिया से आप अपने बीच के संसाधनों से ही ऐसी चीजें बना सकते हैं जो आपके लिए भी काफी उपयोगी होती है और जिसकी व्यावसायिक संभावनाएं भी होती हैं। उल्लेखनीय है कि पाहंदा के समूह ने अब तक 30 क्विंटल कंडे एवं जैविक खाद का विक्रय कर लिया है। अब गोबर के गमले बनाकर वे नई व्यावसायिक संभावनाओं की दिशा में बढ़ रही हैं।