किसान आंदोलन के 100 दिन : किसान और कामगार हुए बर्बाद, सब्जी की फसल खेत में बर्बाद ,लाखों का नुकसान , फैक्ट्रियों में लगे ताले
न्यूज़ डेस्क। कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर 100 दिन से चल रहे आंदोलन के कारण किसान, कामगार और उद्योग बर्बादी के कागार पहुंच गए हैं। किसानों की भलाई के नाम पर शुरू हुआ आंदोलन अब उन्हीं के लिए मुसीबत बन गया है। किसानों को अपनी सब्जी की फसल खेत में ही तबाह करनी पड़ रही है। क्योंकि इसे बेच नहीं पा रहे है। किसान संगठनों की हठधर्मिता का खामियाजा गरीब किसानों को उठाना पड़ रहा है। बॉर्डर बंद होने से उनकी फसल मंडियों में नहीं पहुंच रही है। लेकिन इसका आंदोलनकारियों पर कोई असर नहीं हो रहा है। उन्हें सिर्फ अपना स्वार्थ दिखाई दे रहा है।
दिल्ली बॉर्डर बंद होने से सब्जियां बाहर नहीं जा रही
हरी सब्जियों के दाम औंधे मुंह गिर गए हैं। फसल की लागत न निकलने से अन्नदाता रोने को विवश हो रहे हैं। गोभी, मूली, साग, हरी धनिया बेहद कम दाम में बिक रही हैं। मुख्य वजह किसान आंदोलन के चलते दिल्ली बॉर्डर बंद होने से सब्जियां बाहर नहीं जा रही हैं। स्थानीय मंडियों में सब्जी की मांग कम है। स्थानीय स्तर पर सब्जी की इतनी खपत नहीं है। बाजार में सब्जियों के ढेर हैं, जिससे सब्जी उत्पादक किसानों को घाटा उठाना पड़ रहा है। दो रुपये के भाव किसान की गोभी बिक रही है। मूली तीन रुपये किलो, मेथी साग पांच रुपये किलो की बिक्री हो रही है। किसानों की फसल की उत्पादन लागत भी नहीं निकल रही है।
खेत में फसल बर्बाद होने से लाखों का नुकसान
बॉर्डर के साथ लगते दिल्ली के गांव झाड़ौदा में सब्जी उत्पादकों को लाखों का नुकसान हुआ है। यहां पर करीब ढाई हजार एकड़ में गोभी की फसल होती है। बार्डर बंद होने से खेतों के रास्ते से वाहनों का आवागमन होने के कारण सब्जी की फसल पर धूल जम गई। स्थानीय किसानों का कहना है कि आंदोलन की वजह से बार्डर बंद हुए। गोभी 10 से 12 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती थी, अब 50 पैसे प्रति किलो में भी उसके ग्राहक नहीं रहे। उनकी मंडी बहादुरगढ़ लगती है।
सब्जियां पशुओं को खिलाने के लिए मजबूर
कई किसान ऐसे हैं जिन्हें मजबूरी में सब्जियां पशुओं को खिलानी पड़ गई। बेचारे काफी किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने खेत पट्टे पर लिए हुए हैं, उनके लिए तो बड़ी परेशानी पैदा हो गई है। किसान जल्द आंदोलन समाप्त होने की बाट जोह रहे हैं। यमुना किनारे बसे हुए अधिकतर गांव सहित अन्य काफी गांव में सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। किसान आंदोलन के चलते सब्जियों से लदी गाड़ियां दिल्ली की ओखला और गुरुग्राम मंडी नहीं जा पा रही हैं।
किसानों को खेत-खलिहान जाने में परेशानी
दिल्ली के टिकरी बॉर्डर के आसपास बसे गांव में हाईवे बंद होने से भारी नुकसान हो रहा है। जो कारें, ट्रक और सवारी गाड़ियां हाईवे से होकर गुजरती थीं अब वो गांवों की सड़कों पर दौड़ रही हैं। इससे गांव में दिन भर जाम लगा रहता है। सड़कें टूट जाने से धूल का गुबार उड़ता रहता है। किसानों को खेत-खलिहान जाने में परेशानी होती है। भारी जाम से जो दूरी 1 घंटे में तय होती थी वो अब 4 घंटे में तय होती है। हादसों का डर बना रहता है। सड़क हादसों में कई लोगों की मौत हो चुकी है। जाम की वजह से कई लोग समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाए और उनको जान से हाथ धोना पड़ा। आंदोलनकारियों की वजह से प्रदूषण और गंदगी बढ़ने से बीमारियां बढ़ रही हैं।
फैक्ट्रियां बंद होने कामगार पलायन को मजबूर
किसान आंदोलन ने हरियाणा की इंडस्ट्री को बर्बादी की राह पर खड़ा कर दिया है। सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला टेक्सटाइल सेक्टर आंसू बहा रहा है। देश में डर के माहौल के कारण व्यापारी पानीपत नहीं आ रहे हैं। ट्रांसपोर्टरों की सप्लाई बंद है। कंबल की फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं। बहादुरगढ़ की फुटवियर इंडस्ट्री पर ताला लग रहा है। सोनीपत से हजारों कामगार पलायन कर गए हैं। सोनीपत के मधेपुरा के कृष्णदेव कहते हैं, वह कुंडली के बर्तन बनाने की फैक्ट्री में काम करते थे। आंदोलन के कारण रास्ता बंद है और फैक्ट्री तक आने-जाने की भी परेशानी है।
दम तोड़ने लगी पानीपत की कंबल इंडस्ट्री
चीन के पोलर कंबल को मात देकर पानीपत ने आयात पूरी तरह से खत्म कर दिया था। लेकिन इस किसान आंदोलन ने उन्हीं उधमियों की कमर तोड़ दी है। जो फैक्ट्रियां मार्च तक पूरे उत्पादन के साथ चलती थी, वो फरवरी आते-आते बंद होने लगीं। अब उत्पादन पूरी तरह से बंद है। पोलर कंबल एसोसिएशन के प्रधान जगदीप जैन बताते हैं कि बाहर का व्यापारी डरा हुआ था। वो पानीपत तक आया ही नहीं। एसोसिएशन से जुड़े भीम राणा ने बताया कि इसी साल यूनिट शुरू की थी। उम्मीद थी कि फायदा होगा, लेकिन आंदोलन ने सब चौपट कर दिया।
बहादुरगढ़ में बंद हो गईं 20 से ज्यादा फैक्ट्रियां
बहादुरगढ़ में किराये पर चल रही 20 से ज्यादा मोल्डिंग, तेल निकालने वाली, फूड प्रोडक्ट, कपड़े पर कढ़ाही करने वाली समेत प्लास्टिक मोल्डिंग का काम करने वाली फैक्ट्रियां बंद हो गईं। इनमें 200 से ज्यादा काम करने वाले वर्करों का भी काम छूट गया। गणपति धाम में फैक्ट्री चला रहे नवीन मल्होत्रा ने बताया कि एक फैक्ट्री किराये पर दे रखी थी। फूड प्रोडक्ट की पैकिंग का काम था। आंदोलन की वजह से फैक्ट्री बंद हो गई। अब उनका भवन खाली है। इस कारण 45 हजार रुपये प्रति माह का नुकसान हो गया।
कुरुक्षेत्र में पर्यटकों का आना हुआ बंद
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र है। लेकिन किसान आंदोलन ने इसको भी प्रभावित किया है। श्रीकृष्णा म्यूजियम और विज्ञान एवं पैनोरमा केंद्र में भी सन्नाटा पसरा हुआ है। श्रीकृष्णा संग्रहालय के अधिकारियों के अनुसार, सामान्य दिनों में प्रतिदिन एक हजार पर्यटक आते थे। अब 500 से 600 पर्यटक ही आते हैं। ब्रह्मसरोवर पर दो से तीन हजार पर्यटक पहुंच पाते हैं। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के सीईओ अनुभव मेहता ने बताया कि दिल्ली से रास्ता बंद होने की वजह से भी यहां लोग नहीं आ रहे।