सवाल, नसीहत और फटकार, अब UPA के नेतृत्व को लेकर शिवसेना ने कांग्रेस पर उठाये सवाल, कहा- कितनी बड़ी पार्टी?
मुंबई। कांग्रेस और यूपीए को लेकर बीते कुछ दिनों से शिवसेना का स्टैंड काफी आक्रामक दिख रहा है। बीते दिनों किसान आंदोलन में सरकार की बेफिक्री का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ने के बाद शिवसेना ने आज एक बार फिर से अपने मुखपत्र सामना के जरिए यूपीए के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं। शिवेसना ने अपने संपादकीय में लिखा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अर्थात ‘यूपीए’ का मजबूत होना समय की मांग है। मगर ये होगा कैसे? फिलहाल विरोधियों की एकता पर राष्ट्रीय मंथन शुरू है। ‘यूपीए’ का नेतृत्व कौन करेगा यह विवाद का मुद्दा नहीं है। मुद्दा ये है कि यूपीए को मजबूत बनाना है और भाजपा के समक्ष चुनौती के रूप में उसे खड़ा करना है। कांग्रेस पार्टी ये सब करने में समर्थ होगी तो उसका स्वागत है।
सामना में आगे लिखा है, ‘कांग्रेस के नेता हरीश रावत का कहना है कि गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के पास ही गठबंधन का नेतृत्व होता है। वे सही बोले हैं, लेकिन ये बड़ी पार्टी जमीन पर न चले। लोगों की अपेक्षा है कि वो एक बड़ी उड़ान भरे। बेशक कांग्रेस आज तक बड़ी पार्टी है लेकिन बड़ी मतलब किस आकार की? कांग्रेस के साथ ही तृणमूल और अन्नाद्रमुक जैसी पार्टियां संसद में हैं और ये सारी पार्टियां भाजपा विरोधी हैं। देश के विरोधी दल में एक खालीपन बन गया है और बिखरे हुए विपक्ष को एक झंडे के नीचे लाने की अपेक्षा की जाए तो कांग्रेस के मित्रों को इस पर आश्चर्य क्यों हो रहा है?
शिवसेना ने कहा कि देश में भाजपा विरोधी असंतोष की चिंगारी भड़क रही है। लोगों को बदलाव चाहिए ही चाहिए, इसलिए वैकल्पिक नेतृत्व की आवश्यकता है। सवाल यह है कि ये कौन दे सकता है? सीधा और ताजा उदाहरण देखिए। कर्नाटक में 2023 में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। इस चुनाव के संदर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा ने बड़ी घोषणा की है। 2023 का चुनाव जनता दल-सेक्युलर मतलब जेडीएस स्वतंत्र रूप से अपने बल पर लड़नेवाली है। कभी देवेगौड़ा कांग्रेस के साथी थे। कर्नाटक में उनके सुपुत्र कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन आज दोनों पार्टियों में दरार है। देवेगौड़ा की पार्टी द्वारा अलग से चुनाव लड़ने का फायदा भारतीय जनता पार्टी को ही होगा। कर्नाटक ऐसा राज्य है जहां महाराष्ट्र की तरह कांग्रेस गांव-गांव तक फैली है। कर्नाटक में कांग्रेस को अच्छा नेतृत्व मिला हुआ है। यह कांग्रेस के अच्छे भविष्यवाला राज्य है। लेकिन मत विभाजन के खेल में भाजपा को फायदा हो जाता है इसलिए देवेगौड़ा और कुमारस्वामी को समझाने का काम कौन करेगा? देवेगौड़ा और कुमारस्वामी जैसे कई दल अन्य राज्यों में हैं।