चीन से 1962 की हार के बाद राष्ट्रकवि दिनकर ने प्रधानमंत्री नेहरू को हार के लिए ठहराया जिम्मेवार, कहा था ‘घातक’
गरदन पर किसका पाप वीर! ढोते हो?
शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो?
उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,
तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था,
सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गए थे,
निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गए थे,
गीता में जो त्रिपिटक-निकाय पढ़ते हैं,
तलवार गला कर जो तकली गढ़ते हैं,
शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,
शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का,
“जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल,
कलम, आज उनकी जय बोल।”प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की इन पंक्तियों से गलवान के वीर बलिदानियों को पुनः श्रद्धांजलि अर्पित की। pic.twitter.com/Q7cB8gE1fj
— Amit Shah (@AmitShah) July 3, 2020
इन पंक्तियों मे दिनकर ने नेहरू जी की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि जो नेता लोकप्रियता पाकर फूले नहीं समा रहे थे और जो शेरों की तरह आचरण करने वाली जनता को अजा यानि बकरी का आचरण सिखा रहे थे, वैसे ही नेताओं के पाप को हमारे वीर सैनिक ढो रहे हैं। तलवार गलाकर तकली गढ़ने वाली नीतियों की वजह से ही हमारे वीर सैनिकों को शहादत देनी पड़ी और अपने शोणित यानि खून से हमारे वीर ऐसी नीतियों के कलंक को धो रहे हैं। दरअसल, इन पंक्तियों में तत्कालीन विदेश नीति और रक्षा नीति पर करारा प्रहार किया गया है। सभी जानते हैं कि गलत रक्षा नीति के कारण कैसे भारतीय सैनिक युद्ध के लिए जरूरी सामानों के अभाव में ही युद्ध लड़ रहे थे।
चीन की हार से दिनकर जी गुस्से और दुख से भरे हुए थे। उनके क्षोभ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू को इशारों-इशारों में ‘घातक’ तक कह डाला। उन्होंने लिखा-
घातक है जो देवता-सदृश दिखता है,
लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है।
जिस पापी को गुण नहीं, गोत्र प्यारा है,
समझो, उसने ही हमें यहां मारा है।
जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,
या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,
उस कुटिल राजतंत्री कदर्य को धिक् है,
यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं बधिक है।
चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,
जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं,
जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,
या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं,
यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है,
भारत अपने घर में ही हार गया है।
दिनकर की ये पंक्तियां नेहरू के जमाने की राजनीतिक अक्षमता और भ्रष्टाचार की कहानी कहती हैं। वे बता रहे हैं कि कैसे सच जानकर भी सच को नजरअंदाज किया जाता रहा, चुप्पी साधी जाती रही, भ्रष्टाचारियों तथा चापलूसों को संरक्षण दिया जाता था। यही वजह थी कि भारत अपने ही घर में हार गया।
सरकारी और प्रशासनिक तंत्र को जगाने के लिए बेहद कठोर शब्दों का प्रयोग करते हुए दिनकर जी आगे लिखते हैं-
ओ बदनसीब अंधो! कमजोर अभागो?
अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो।
वह अघी, बाहुबल का जो अपलापी है,
जिसकी ज्वाला बुझ गयी, वही पापी है।
तलवारें सोतीं जहां बंद म्यानों में,
किस्मतें वहां सड़ती हैं तहखानों में।
बलिवेदी पर बालियां-नथें चढ़ती हैं,
सोने की ईंटें, मगर नहीं कढ़ती हैं।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की ये पंक्तिया, #Bihar के परिप्रेक्ष्य में बिलकुल सटीक है!#baatbiharki #poem pic.twitter.com/7yua5fRWAD pic.twitter.com/oynnOeiZaa pic.twitter.com/COTajfcMhx
— Binod Kumar Yadav (@BinodKu59923348) June 29, 2020
दिनकर जी सिर्फ नेहरू सरकार की नीतियों को गलत ठहरा कर चुप नहीं हो गए बल्कि, वे देश को निर्बलता की ऐसी स्थिति से निकलने का समाधान बताते हुए वीरता और शौर्य का आह्वान भी करते हैं।
पहली आहुति है अभी, यज्ञ चलने दो,
दो हवा, देश की आग जरा जलने दो।
जब हृदय-हृदय पावक से भर जाएगा,
भारत का पूरा पाप उतर जाएगा,
देखोगे कैसा प्रलय चण्ड होता है!
असिवन्त हिन्द कितना प्रचंड होता है
बांहों से हम अंबुधि अगाध थाहेंगे,
धंस जाएगी यह धरा, अगर चाहेंगे .
तूफान हमारे इंगित पर ठहरेंगे।
हम जहां कहेंगे, मेघ वहीं घहरेंगे।
गरजो, अंबर को भरो रणोच्चारों से,
क्रोधान्ध रोर, हांकों से, हुंकारों से।
यह आग मात्र सीमा की नहीं लपट है,
मूढो! स्वतंत्रता पर ही यह संकट है।
जातीय गर्व पर क्रूर प्रहार हुआ है,
मां के किरीट पर ही यह वार हुआ है।
अब जो सिर पर आ पड़े, नहीं डरना है,
जनमे हैं तो दो बार नहीं मरना है।
“जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल,
कलम,आज उनकी जय बोल।”राष्ट्रकवि रामधारी सिंह"दिनकर"की इन पंक्तियों से जिस प्रकार प्रधानमंत्रीजी ने गलवान घाटी में शहीद हुए वीर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित किया और वीर जवानों का हौसलाफजाई किया।यह हम बिहारवासियों के लिए गौरव की बात है। pic.twitter.com/266vf5sevp
— Vivek Thakur (@_vivekthakur) July 3, 2020
1962 की हार के करीब साठ वर्षों के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समय सीमा पर चीन से संघर्ष की स्थिति बनी है। ऐसे में, दिनकर जी के ये वाक्य बहुत ही प्रासंगिक हैं। चीन के खिलाफ कवि का गुस्सा जैसे भारतीय जनमानस में अब तक पलता आ रहा हो!
कुत्सिक कलंक का बोध नहीं छोड़ेंगे,
हम बिना लिए प्रतिशोध नहीं छोड़ेंगे,
अरि का विरोध-अवरोध नहीं छोड़ेंगे,
जब तक जीवित हैं, क्रोध नहीं छोड़ेंगे।
गरजो हिमाद्रि के शिखर, तुंग पाटों पर,
गुलमर्ग, विन्ध्य, पश्चिमी, पूर्व घाटों पर,
भारत-समुद्र की लहर, ज्वार-भाटों पर,
गरजो, गरजो मीनार और लाटों पर।
झकझोरो, झकझोरो महान सुप्तों को,
टेरो-टेरो चाणक्य-चंद्रगुप्तों को,
विक्रमी तेज, असि की उद्दाम प्रभा को,
राणा प्रताप, गोविन्द, शिवा, सरजा को,
वैराग्यवीर, वंदा फकीर भाई को,
टेरो, टेरो माता लक्ष्मीबाई को।
वीरों और सेनानियों का आह्वान करते हुए दिनकर लिखते हैं-
छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए,
मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।
दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है,
मरता है जो, एक बार मरता है।
तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे!
जीना है तो मरने से नहीं डरो रे!
कवि ने शांति के लिए संघर्ष और वीरता को अनिवार्य माना है। आपको याद होगा कि हाल ही में लेह का दौरा कर जवानों से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा था कि कमजोर कभी भी शांति की पहल या स्थापना नहीं कर सकता है।
हम मान गये, जब क्रान्तिकाल होता है,
सारी लपटों का रंग लाल होता है।
जाग्रत पौरुष प्रज्वलित ज्वाल होता है,
शूरत्व नहीं कोमल, कराल होता है।
कविवर दिनकर की ये पंक्तियां नेहरू जी की उस तस्वीर की याद दिलाती है, जिसमें वे शांति का संदेश देने के लिए कबूतर उड़ाते हुए दिखते हैं। कवि इस रवैये को कठघरे में खड़ा करते हुए कहता है कि आखिर इस शांतिवाद का हश्र क्या हुआ?
जब शांतिवादियों ने कपोत छोड़े थे
किसने आशा से नहीं हाथ जोड़े थे?
पर, हाय धर्म यह भी धोखा है, छल है
उजले कबूतरों में भी छिपा अनल है।
पंजों में इनके धार धरी होती है,
कइयों में तो बारूद भरी होती है।
जो पुण्य-पुण्य बक रहे, उन्हें बकने दो,
जैसे सदियां थक चुकीं, उन्हें थकने दो,
पर, देख चुके हम तो सब पुण्य कमा कर
सौभाग्य, मान, गौरव, अभिमान गंवा कर।
वे पियें शीत, तुम आतप-घाम पियो रे!
वे जपें नाम, तुम बनकर राम जियो रे!
वे देश शान्ति के सबसे शत्रु प्रबल हैं,
जो बहुत बड़े होने पर भी दुर्बल हैं,
हैं जिनके उदर विशाल बांह छोटी है,
भोथरे दांत, पर जीभ बहुत मोटी है,
औरों के पाले जो अलज्ज पलते हैं,
अथवा शेरों पर लदे हुए चलते हैं।
उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है,
सुख नहीं धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है,
विज्ञान, ज्ञान-बल नहीं, न तो चिंतन है,
जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है,
सबसे स्वतंत्र यह रस जो अनघ पियेगा,
पूरा जीवन केवल वह वीर जियेगा।
“समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।”
– रामधारी सिंह दिनकरराष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत 'वीर रस' के महान राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की पुण्यतिथि पर सादर नमन। pic.twitter.com/a7QOBXCHKh
— Arjun Ram Meghwal (@arjunrammeghwal) April 24, 2020
महाकवि दिनकर की नजर पूंजीवादी और विषमतावादी समाज पर भी है। समाज की ऐसी दशा को राष्ट्रीय फलक पर देश की खराब हालत की एक वजह बताते हुए वे कहते हैं-
कुछ समझ नहीं पड़ता रहस्य यह क्या है,
जानें, भारत में बहती कौन हवा है,
गमलों में जो हैं खड़े, सुरम्य-सुदल हैं,
मिट्टी पर के ही पेड़ दीन-दुर्बल हैं,
जब तक है यह वैषम्य समाज सड़ेगा,
किस तरह एक होकर यह देश लड़ेगा।
राजनीतिक दलों से अपने मतभेद भुलाकर एक साथ आने की अपील करते हुए कवि कहता है कि आज दक्षिण पंथ और वाम पंथ को भूल कर एकजुट होने का वक्त आया है। यह एकजुटता ही देश को विजयी बना सकता है।
झंझा-झकोर पर चढ़ो मस्त झूलो रे!
वृन्तों पर बन पावक-प्रसून फूलो रे!
दाएं-बाएं का द्वन्द्व आज भूलो रे!
सामने पड़े जो शत्रु, शूल हूलो रे!
वृक हो कि व्याल, जो भी विरुद्ध आएगा,
भारत से जीवित लौट नहीं पाएगा।
शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण भारत के सनातन पराक्रमी महापुरुष परशुराम की प्रतीक्षा की बेसब्री और आशा में कवि कहता है-
निर्जर पिनाक हर का टंकार उठा है,
हिमवंत हाथ में ले अंगार उठा है,
तांडवी तेज फिर से हुंकार उठा है,
लोहित में था जो गिरा, कुठार उठा है।
संसार धर्म की नयी आग देखेगा,
मानव का करतब पुनः नाग देखेगा।
‘परशुराम की प्रतीक्षा’ एक ओर तत्कालीन राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक परिदृश्य में व्याप्त कदाचार और अनाचार को प्रश्नांकित करती है, तो दूसरी ओर देश की स्वाभिमानी और साहसी जनता और सैनिकों की तपस्या, बलिदान और आशावाद को भी स्वर देती है।
मांगो, मांगो वरदान धाम चारों से,
मंदिरों, मस्जिदों, गिरजों, गुरुद्वारों से,
जय कहो वीर विक्रम की, शिवा बली की,
उस धर्मखड्ग ईश्वर के सिंह अली की।
जब मिले काल, ‘जय महाकाल’ बोलो रे!
सत श्री अकाल! सत श्री अकाल बोलो रे!
सोर्स :- परफॉर्म इंडिया