आखिरकार मोदी सरकार ने कर दिखाया 60 सालों का अधूरा काम पूरा, सीमा पर सौ फीसदी कनेक्टिविटी हासिल करने के करीब पहुंचा भारत, सिर्फ 50.3 किमी सड़कों का निर्माण बाकी
न्यूज़ डेस्क। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र की सत्ता संभालते ही जहां पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते बेहतर करने की कोशिश की, वहीं देश की सीमाओं पर बुनियादी ढांचे के विकास पर भी जोर दिया। सीमा पर सेना की पहुंच को आसान और तीव्र बनाने के लिए मोदी सरकार ने फंड और अन्य सुविधाएं देने में काफी तेजी दिखाई, जिसका नतीजा है कि चीन सीमा से लगी 61 रणनीतिक सड़कों की 98 प्रतिशत कनेक्टिविटी पूरी कर ली गई है। सिर्फ दो प्रतिशत काम बचा है। इसके बाद भारत एलएसी पर सड़क संपर्क के मामले में चीन की बराबरी में खड़ा होगा।
चीन सीमा पर कुल 61 सड़कों का निर्माण
सरकारी दस्तावेज के अनुसार, अरुणाचल, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर (लद्दाख सहित), उत्तराखंड और सिक्किम में चीन सीमा पर कुल 61 सड़कों का निर्माण चल रहा था। इनमें अरुणाचल में 27, हिमाचल में 5, कश्मीर में 12, उत्तराखंड में 14 और सिक्किम की 3 सड़कें शामिल हैं। इनकी कुल लंबाई 2323.57 किलोमीटर है।
सीमा पर 98 प्रतिशत सड़कों का निर्माण कार्य पूरा
कुछ सड़कों की एक से ज्यादा लेन बननी हैं, इसलिए कार्य थोड़ा बचा है। लेकिन, संपर्क जोड़ने के हिसाब से यह 98 प्रतिशत पूरी हो चुकी हैं। दस्तावेज के अनुसार, महज चार सड़कों को जोड़ने के लिए अलग-अलग स्थानों पर 50.32 किलोमीटर सड़क का निर्माण बचा है। जैसे ही यह कार्य पूरा हो जाएगा, भारत चीन सीमा पर सौ प्रतिशत कनेक्टिविटी हासिल कर लेगा।
सीमा पर सेना और संसाधनों का तेजी से पहुंच हुआ संभव
इसका फायदा यह होगा कि भारतीय सेनाओं को चीन सीमाओं तक पहुंचने में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी। सेनाओं के साथ-साथ उनके संसाधनों को भी पहुंचाया जा सकेगा। सड़कें बनने से सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा बलों के लिए अन्य बुनियादी ढांचा भी मजबूत किया जा सकेगा।
सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास से बौखलाया चीन
आज भारत-चीन सीमा पर LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर चीन के आक्रामक होने की एक प्रमुख वजह भारत द्वारा अपने क्षेत्र में सड़क, पुल एवं अन्य बुनियादी ढांचे का विस्तार करना है। चीन को लगने लगा है भारत के बुनियादी ढांचे के विकास से अब उसकी मनमानी नहीं चलेगी। भारतीय सीमा में घुसपैठ की उसकी कोशिशों पर लगाम लग गयी है, अब हर कदम पर उसके सामने रूकावटें खड़ी हो गई हैं, सीमा पर अतिक्रमण करते ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वह बौखला उठा है।
5 मई को भारत और चीन की सेना में झड़प
पूर्वी लद्दाख में स्थिति तब खराब हुई जब बीते पांच मई को पेगोंग झील क्षेत्र में चीन LAC का अतिक्रमण कर भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश की। भारतीय सेना ने जब इसका विरोध किया, तो भारत और चीन के लगभग 250 सैनिकों के बीच लोहे की छड़ों और लाठी-डंडों से झड़प हो गई। दोनों ओर से पथराव भी हुआ था, जिसमें दोनों देशों के सैनिक घायल हुए थे। यह घटना अगले दिन भी जारी रही। इसके बाद दोनों पक्ष ”अलग” हुए, लेकिन गतिरोध जारी रहा। इसी तरह की एक अन्य घटना में नौ मई को सिक्किम सेक्टर में नाकू ला दर्रे के पास दोनों देशों के लगभग 150 सैनिकों के बीच झड़प हो गई थी।
गलवान में DBO रोड पर चीन की नजर, मिला करारा जवाब
चीन की सेना की ओर से भारत के पेट्रोलिंग पॉइंट 14 पर निगरानी चौकी बनाए जाने की वजह से भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हुए तो चीन के 43 से अधिक सैनिक मारे गए। यदि इस पोस्ट को हटाया नहीं जाता तो चीन की सेना ना केवल काराकोरम की तरफ भारतीय सेना की आवाजाही पर नजर रख सकती थी, बल्कि दारबुक-श्योक-दौलतबेग ओल्डी (DBO) रोड पर सेना के वाहनों की आवाजाही को रोकने की क्षमता मिल जाती। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस पोस्ट को भारतीय सीमा में एलएसी के इस पार बनाया गया था। अगर चीनी सेना अपनी साजिश में सफल हो जाती तो यह भारतीय हितों के लिए बहुत बड़ा नुकसान होता।
चीन के विरोध के बाद भी गलवान नदी पर बना पुल
LAC पूर्वी लदाख की गलवान घाटी में सेना के इंजीनियरों ने 60 मीटर लंबे उस पुल का निर्माण पूरा कर लिया, जिसे चीन रोकना चाहता था। गलवान नदी पर बने इस पुल से भारत-चीन सीमा के इस संवेदनशील सेक्टर में भारत की स्थिति बहुत मजबूत हो गई है। गलवान नदी पर बने इस पुल की मदद से अब सैनिक वाहनों के साथ नदी पार कर सकते हैं। गलवान पर पुल बनने के बाद भारत के जवान 255 किलोमीटर लंबे रणनीतिक DBO रोड की सुरक्षा कर सकते हैं। यह सड़क दरबुक से दौलत बेग ओल्डी में भारत के आखिरी पोस्ट तक जाती है।
Great news, construction of bridge over Galwan river completed, despite objection by Chinese. China can't bully India into submission, 2020 is not 1962.
— Brig VK Agrawal (@brigvkagrawal) June 19, 2020